Sunday, 30 December 2012

स्त्री

अपहरण के बाद 
देती हूँ अग्निपरीक्षा 
आत्महत्या करने पर 
धरती माता की गोद में 
उठा लेने के कथन से 
स्वर्णाक्षरों में  विभूषित होती हूँ 
कोई  कुसूर ना होने पर भी 
शापित शिला बन जाती हूँ 
कभी  अपनों के सामने सभा में
 की जाती हूँ अपमानित 
कभी कन्या के पैदाइश का 
बन जाती हूँ कारण 
कभी गर्भाशय की दीवारों से 
उखाड़ दी जाती हूँ 
उगने से पहले 
कभी  घटाघोप पर्दों में 
घुट-घुटकर जीने के लिए 
कर दी जाती हूँ मजबूर 
कभी दूसरी औरत 
होने का उठाती हूँ दंश 
मार दी जाती हूँ 
अपने ही प्रेमी द्वारा 
कभी नॉच ली जाती हूँ 
दरिंदों के बीभत्स इरादों से 
निर्जीव लाश बन 
जाती हूँ ताउम्र 
कभी निर्मम दुनिया से 
ले लेती हूँ विदा 
किसी की करनी 
भुगतते हुए 
मैं कोई 'इंसान' कहाँ हूँ !!
बस एक ' स्त्री ' हूँ .............





Thursday, 13 December 2012

'माँ '

माँ !
तुम्हारे 'अफगान स्नो' की
मोटी-छोटी शीशी में
कितना कम होता था
खुशबू वाला स्नो
जबकि सामने के
पहाड़ों पर
बिखरा पड़ा था
स्नो का अम्बार !!
वो छोटी लड़की
सोचती रहती
जब कभी बड़ी होगी वह
भर-भर लायेगी
बड़ी शीशियों में
सामने वाला  स्नो
ताकि
चुपके -चुपके
दायें हाथों की उँगलियों से
निकालकर
बायीं हाथ की हथेली में
रखा  गया स्नो
कभी ना पिघले
कभी कम ना हो
और अपने गालों पर
लगाती रहे वो छोटी लड़की
खूब सारा स्नो :))


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माँ !
तुम्हारे  मुलायम
पतले
हल्के बाल
तुम्हारे  हाथों का
स्नेह पाकर
संवरे रहते थे
शांत  से
तुम्हारे चौकोर
मेकअप - बौक्स
में से निकल
एक छोटा पफ
या बड़ा
 पर
हल्का  'बन '
तुम्हारे पतले बालों में
लुक-छुप जाता था
तुम्हारे ऊँचे माथे पर
ईंगुर की बड़ी लाल बिंदी
 रहती थी सजी
मुस्कुराती हुई
तुम्हारे कानों में
वो भारी पर छोटे
कर्णफूलों ने
तुम्हारे बड़े कानों को
झुलाने का लिया था जिम्मा
 तुम्हारे नाक में
बरसों से जमी
साधारण आकार की
वह पीले सोने की लौंग
कितनी संतोषी थी
गले में
काले चरेऊ
 और
घुंघरू वाली सोने की मछलियों
से मढ़ा मंगलसूत्र
नन्हें बच्चे की भांति
 गलबहियां  डाले लिपटा रहता
अपनी कपड़े की गुड़िया को
बरसों
 बचपन में
 तुम्हारे जैसा रूप देने पर भी
 न ला  पायी
स्वयं अपने भीतर मैं
तुम्हारे जैसी आत्मा  .........








Thursday, 6 December 2012


अज्ञानी ,
मूर्ख ,
अनपढ़ ,
गंवार,
पागल ,
हैं
फिर भी
सुखनवर
बन
विचरते रहते हैं
 ये  विचार ....
बुद्धिमत्ता
की बेड़ियाँ
कैसे पहनाऊं इन्हें !!

यूँ जिन्दा रहना

जिन्दा रहती हैं
हर स्त्री के भीतर कई
लड़कियां
निश्छल बचपन की
गुड्डी,मन्नू,मिनी ,टिनी
से लेकर
कब्बू ,मुन्नी ,नन्हीं ,पम्मी तक
छींट के झालरदार फ़्रोक से लेकर
नायलेक्स के पाइपिंग वाले फ़्रोक तक
बाटिक प्रिंट और खादी प्रिंट के
 कफ्तान से लेकर
मनोहारी चूड़ीदार तक
नयी नीली डेनिम से लेकर
भूरी ढीली-ढाली कॉडराय तक
लकड़ी की बड़ी अलमारी से
निकाली गयी
माँ की सिल्क की साड़ी में
स्वयं को लपेटे जाने से लेकर
स्वयं की साड़ी मिलने तक
गोल बड़े डिब्बे के माँ के गहनों से
बड़ी नथ को पहनने के असफल प्रयास से लेकर
खुद के ज्यूलरी बॉक्स मिलने तक
अरमानों को लगा लेती है पंख
उड़ती जाती हैं
दोनों हाथों में
मायके की देहरी में
 उछाले गए चावलों में
 सुरक्षित रखती हैं स्नेह
बढ़ाती हैं पग
ससुराल के अनेक रिश्तों को
 एक साथ निभाने तक
जीती हैं कई जीवन एक साथ
स्निग्ध त्वचा से लेकर
महीन झुर्रियों के संसार तक
काले केशों से लेकर
चाँदी तारों के आगमन तक
बन जाती हैं अठारह साल की कन्या
अपनी सहेलियों के बीच
तो कभी ठिठोली कर आती हैं
मित्रों से
माँ बन स्नेह लुटाने से लेकर
दादी -नानी के अटूट सपनों के आने तक
अनेक ह्रदय को बसाती हैं
अपने एक छोटे से ह्रदय में ...........



Sunday, 18 November 2012

तीन ' तांका ' [ जापानी विधा ]

कोई कशीदे
नहीं काढे ना रची 
कोई रचना 
बस खीझते रहे 
ख़याल यूँ ही मेरे 


      * 
तुम्हारा आना 
सरदी  की मोहिली 
धूप सा लगा 
बस बोल अबोले 
गुमसुम से रहे 

       *
उबते रहे 
इन्तजार के पल 
रुखसत भी 
होते  गए  यूँ बिन 
ठहरे बिन कहे

Tuesday, 6 November 2012

नवरात्र में लिखी एक कविता

दुर्गुली सीख रही है 
तीर को निशाने पर 
लगाने के गुर 
ललिता ने उडाएं हैं 
कागज़ के जहाज 
बनना है उसे पायलेट 
नैना ने 
डलवा दिया है 
आँगन में नेट 
बनना है उसे 
अगली साइना 
कात्यायनी ने 
थाम ली है 
पिता की बंदूक
आर्मी की लगन है उसे 
पार्वती ने
 मना कर दिया है
बर्तन मांजने से 
फ़ालतू घूमते 
भाई से मंजवा लो बर्तन 
माँ को दिया है मशवरा 
उसे पढ़ना है 
पायथागोरस और आर्किमिडीज 
सरस्वती ने अभी -अभी 
रची हैं नयी कविता 
-----------------
उस पाँच साल की 
गौरी की माँ ने भी 
लिया है नया फैसला 
कन्यापूजन में भेजने 
के बजाय वह भेजेगी 
बेटी को
 कल से कराटे 
की कक्षा में .............
 



Sunday, 28 October 2012

 गवाक्ष से झाँक आया है
एक ख़याल
अधिक नीला आसमां 
हरे - भूरे गलीचों की दुनिया 
तब से 
पीले पत्तों और जर्द दुनिया 
के एक केनवास पर 
धानी रंग में कूची डुबो 
नमूने बनाता रहा 
अचानक एक 
बादल  संतरी 
बन चल निकला 
साथ-साथ 
गर्जन कर बरसने लगा 
बह गए धानी रंग 
पीत सा ठगा 
 रह गया ख़याल



Monday, 6 August 2012

अभी साँझ नहीं हुई

फेसबुक पर  अपनी मित्र  प्रगति को सर्च करते हुए  अचानक प्रज्ञा महरा पर निखिल की नजरें थम गयी , उगलियाँ रुक गयी .... 'हां  प्रज्ञा ही  तो   है ये; वही  चंचल आँखे , दूध सा रंग,पिनाज मसानी जैसे   घुँघराले बाल ,  गालों के गड्ढे और गहरे हो गए हैं , वैसे ही  गर्वीली  ऊँची गरदन   बस थोड़ा वेट गेन कर लिया है ;  सोलह साल बाद भी प्रज्ञा वैसी ही है ',   कैसे भूल सकता है उसे निखिल !!.........निखिल उठकर ड्रेसिंग टेबल तक गया , स्वयं को भरपूर नजर डाल सोचने लगा ....हूँ  ..मुझमें भी कोई खास चेंज नहीं आया है बस बालों  में  थोड़े से  चाँदी   की तार झलकने लगे  है ....पर क्यों देख रहा है  वह वो खुद को !! ..........ह्रदय में एक गहरी  टीस उठी ....सोफे में अधलेटा हो वह दोनों हाथ सिर के पीछे रख अतीत में खो गया ..............
                                                                         ***
                    अट्ठाईस साल का निखिल  वल्दिया  हिंदी फिल्म के हीरो जैसा आकर्षक था ,  क्लीन शेव्ड चेहरा  , छरहरा लंबा युवक था  , राइट साइड से पार्टिंग कर बाल बनाने का तरीका उसे  अपने मित्रों  भिन्न  बनाता  ,अभी दो  साल पहले उसने कमर्शियल पायलेट  का कोर्स खत्म किया था  और एक अच्छी कंपनी में वह कमर्शियल पायलेट था  |  जब भी वह उस कंपनी की पायलेट  की ड्रेस पहनता   तो  कितना जँचता था !!
           पिता रिटायर्ड एजुकेशन डायरेक्टर थे  , रानीखेत में सैटल  हो गए थे | रानीखेत में कालिका के पास शानदार बंगला था  |
                  तीन बहनों  के बाद निखिल बहनों का लाडला भाई ;....खासकर' मंझली दी' का मुँहलगा भाई था   , मंझली दी से वह सब बातें शेयर करता  ; बिलकुल दोस्तों की भांति ,सभी बहने अपनी - अपनी गृहस्थी में खुश थीं |
     | माँ की तीव्र इच्छा थी  कि अब निखिल का विवाह हो जाए |
   '' इतनी जल्दी मत मचाओ माँ ; जब भी कोई कुमाऊंनी सुन्दर कन्या देखती हो; बस आपको उसमें अपनी बहू नजर आने लगती है; ...जिस लड़की से मेरी शादी होगी वह सुन्दर ही नहीं  इंटेलीजेंट  भी होनी चाहिए " ,   जोर की हँसी हँसते हुए उसने  अपनी  माँ से कहा    | माँ को अपनी मर्जी बता दी  थी  उसने, ....' हाँ - हाँ  तू फिकर मत कर ; ऐसी ही कन्या से करुँगी तेरी शादी, ...अप्पू से भी बोल दिया है मैंने ',   माँ एक स्नेह भरी मुस्कान निखिल पर डालकर कहा |
               अप्पू दीदी  [ मंझली दी ]  की ससुराल  रैमजे अस्पताल के पास था |   पर अभी वे दिल्ली रहती  थी 
| उनके पति  वहीं थे  | बड़ी और छोटी दीदी को निखिल के विवाह का इन्तजार  तो  था   पर  कन्या में  ढूँढने में कोई दिलचस्पी नहीं थी  '  नक्शेबाज लड़का ! पता नहीं हमारी ढूंडी  लड़की पसंद भी करेगा कि नहीं....इसके लिए लड़की भी ऐसी  ही नखरीली होनी चाहिए ',....दोनों बहनें आपस में बातें करती  |
       निखिल को स्वयं ही ढूंड लेनी चाहिए लड़की .... | निखिल को कुछ समझ में नहीं आता कई बार उसे आभास  हुआ उसकी सह- पायलेट नीला ने कई बार निखिल के प्रति अपने आकर्षण को निखिल के आगे जाहिर किया   पर ये शायद केवल आकर्षण है ; प्यार -व्यार  जैसा कुछ भी नहीं  ,  वैसे भी ...निखिल ने इससे आगे कुछ सोचा ही नहीं |
                           अप्पू दी  ने आखिर अपने लाडले भाई के लिए उसकी पसंद की लड़की तलाश ली |
      कभी कहा था उसने निखिल से,  ' तेरे लिए चाँद का टुकड़ा  जैसी लड़की देखूंगी रे  ! ',  उसे यकीन था  निखिल को प्रज्ञा अवश्य पसंद आयेगी |
         कर्नल प्रताप सिंह महरा , आर्मी से रिटायर्ड हो  नैनीताल में बस गए थे ,उनका मन तो था देहरादून में बसंत -विहार में बसने का ; जहां अधिकतर  फौजी ऑफीसर बसे थे  पर प्रज्ञा को नैनीताल पसंद था ..फिर उसे ग्रेजुअशन के लिए एडमिशन भी तो लेना था, प्रज्ञा को नैनीताल जान  से प्यारा था   | प्रज्ञा का फाइनल ईयर था  |  ब्रुकहिल पर महरा साहब का छोटा मगर कलात्मक बंगला था  , जिरेनियम , गुलाब और पिटुनियां और ग्रीन प्लांट से सजा हुआ ....छोटा लाँन , छोटा बरांडा , छतों के बार्डर पर लगे तराशे गए कंगूरे ...जब भी इनसे बर्फ पिघलती तो कंगूरे शीशे का आभास देते थे  |कर्नल थे तो  खुर्राट व्यक्तित्व वाले पर उनका ह्रदय मोम जैसा था , ......झील से उठते कोहरे ,  तेज भागते बादल , अचानक से आई बारिश  , कोयल की कूंक , बर्फ के कंगूरे उन्हें बहुत लुभाते  |  यूँ  कर्नल चाहते थे उनका दामाद भी एयरफोर्स या आर्मी से हो पर उनकी पत्नी  ममता ने बिलकुल मना कर दिया,    ...शुरू में तो कितना दूर रहना पड़ता है परिवार से फौज वालों को ...'पीस' में हो तभी फॅमिली ले जा सकते हैं | ' नहीं जी , कोई सिविलियन  से करेंगे प्रज्ञा का विवाह ' , .......मिसेज महरा ने अपने पति से आग्रह किया था  |
             प्रज्ञा लंबी , दूध जैसे रंग वाली लड़की  थी , उसकी बड़ी चंचल आँखे और गालों में पड़ने वाले गड्ढे उसे अधिक आकर्षक बनाते थे  , उसके घुंघराले कंधे तक बाल यू शेप में कटे थे , बाल आगे आये या नहीं गर्दन झटककर बालों को पीछे ले जाना उसका स्टाइल ही बन गया था  | अपने ग्रुप में वह सबकी  चहेती  थी |
        नैनीताल की ऑक्सीजन ने उसे और भी आकर्षक बना दिया था  | डैड की लाडली ' प्रज्ञा ', ...' माय  लिटिल प्रिंसेस '  कहते थे  उसे कर्नल साहब | प्रज्ञा उनकी इकलौती बेटी थी |
             उस दिन  प्रज्ञा को रु-ब- रु देखने का दिन चुना गया | दिल्ली से अप्पू और मुंबई से निखिल रानीखेत कल ही आ पहुंचे ...| अप्पू , उसके पति धीरेन्द्र , माँ , पापा और महाशय निखिल अपनी कार में सज -धजकर लद गए , कार नैनीताल की ओर रवाना हो गई |  निखिल अभी जींस और टी -शर्ट में था  , अप्पू दी के ससुराल पहुंचकर ये फैशनेबल लड़का फिर से तैयार होगा ...उसने सोच लिया था  : ऑलिव - ग्रीन  ट्राउजर और  पिस्ता  कलर की  फुल शर्ट पहनेगा वह , आखिर  आर्मी वालों के यहाँ जा रहा है ड्रेस कोड का ध्यान   तो रखना ही पड़ेगा उसे  जबकि उसका  मन था श्वेत टी - शर्ट और बस डेनिम जींस डाले ...कैजुअल उसे अधिक पसंद था  |         पर अप्पू दी  के आगे उसकी एक ना चली | असल में  दीदी को यह परिवार और प्रज्ञा इतनी पसंद आई कि वह नहीं चाहती उसके लाडले भाई को किसी भी  छोटी - मोटी वजह से नापसंद किया जाए |
                 कर्नल साहब के यहाँ अफरा -तफरी मची थी  , किचन और डाईनिंग  रूम मे खास हलचल थी  | महंगी क्राकरी  से सजा था टेबल , कॉर्नर के टेबल पर इकेबाना से फ्लावर पॉट  सजा था  , ऑफ वाईट रंग की दीवारों वाला डाईनिंग रूम में शोख रानी रंग के परदे लगे थे ....अधिकतर शीतल रहने वाला नैनीताल में चटख रंग घरों को वार्म लुक देते हैं ...| ड्राइंग रूम लेमन रंग का था , यहाँ नन्हें -नन्हें  मरून  और पीले फूलों वाले परदे  और पीली  झालरें थीं  पर्दों पर , बीच में शीशे की टेबल थी  जिसका आधार   चायपत्ती के पेड़ की झाड़ी से बना था , इसे कर्नल अपनी असम पोस्टिंग की निशानी कहते थे  | क्रीम रंग के सोफे और गहरे मरूंन की  कार्पेट  थी  पर उसकी आभा लाल  आभास     दे  रही थी  |
              प्रज्ञा चाहती थी कि वो या तो चूडीदार  और लंबा कुर्ता पहने या सिंपल जींस और सिल्क का बाटिक प्रिंट वाला  छोटा गुलाबी कुर्ता , ..... पर  फौजी डैड  ! उनका आदेश था  कि प्रज्ञा एकदम भारतीय लिबास पहने ...अतः  प्रज्ञा ने अपने  कजन के विवाह;  जो नवम्बर में हुआ था , वही साड़ी निकाली  ; कांजीवरम की प्लेन ग्रे  साड़ी जिस  पर ग्रीन , गोल्डन  और रेड का बार्डर था  | गोल्डन स्लीवलैस  ब्लाउज के साथ खूब फब रही थी ;    ग्रे साड़ी ...|  अंत समय तक वह साड़ी पहन ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रही, ' ओह ! कधे में अच्छे से पिन लगा लूँ ये साड़ी वर्ना संभल नहीं पाएगी मुझसे ' , |
 नियत समय पर लड़के वाले  आ गए , प्रज्ञा ने  गर्दन ऊँची रख , धीरे -२  मुस्कुराते हुए ड्राइंगरूम मे प्रवेश किया ,   निखिल तो उसे एकटक देखता रह गया !!     ..........अपने दाहिनी  ओर बैठी दीदी के कान के पास मुँह ले जाकर बोला ; अप्पू दी !  आपकी च्वाइस पर मुझे पूरा यकीन था ' .........फिर क्या था ये नखरे वाला लड़का, कम थोड़े ना था , प्रज्ञा  को ये हीरो पसंद आना ही था | झटपट प्रज्ञा और निखिल ने एक दूसरे को पसंद कर लिया |
                   अभी पूरी तरह हाँ नहीं हुई थी  , दोनों परिवार   भ्रम   में थे   ; प्रज्ञा मांगलिक थी  , कर्नल साहब थोड़ा सोच में थे  पर डायरेक्टर वल्दिया इन सबमें इतना विश्वास नहीं करते  थे , आखिर पंडित जी से इसका तोड़ पूछकर  विवाह  कर दिया गया |   छोटा सा   हरियाला  रानीखेत,  कुछ दिन निखिल - प्रज्ञा और  मेहमानों से गुलजार रहा ....., फिर सब वापस अपने - अपने घर |  निखिल और प्रज्ञा भी मुंबई आ गए , प्रज्ञा यहाँ केवल दो हफ्ते के लिए थी उसे वापस फाइनल परीक्षाओं  के लिए  नैनीताल  जाना था | चार - पाँच दिन तो  यूँ ही बीत  गए अब निखिल को जॉब पर जाना था , टाइम -बे- टाइम की फ्लाईट , हालाँकि निखिल की पूरी कोशिश थी कि  कुछ दिन उसे अपने मनपसंद शेड्यूल मिले | दो हफ्ते कैसे बीत  गए ...लव - बर्ड्स को पता ही नहीं चला ..... |
प्रज्ञा वापस नैनीताल  आ गयी थी |
                  दो महीने गुजर गए प्रज्ञा का बी .कॉम .  फाइनल हो चुका था  , उसने  मुंबई  एम. बी . ए . में प्रवेश ले लिया  | कभी - कभी निखिल की  फ्लाईट की  उल्टी - सीधी टाइमिंग उसे बहुत परेशान करती थी   ....खैर ..उसने स्वयं को पढ़ाई में व्यस्त रखा  | एक साल बीत गया , कई बार प्रज्ञा ने निखिल से उसके जॉब के बारे में शिकायत की , निखिल उसकी इस शिकायत पर  अपने मनमोहक  स्टाइल से प्रज्ञा को मना लेता | एक साल बीत गया ,   प्रज्ञा इंटर्नशिप कर रही थी ...इन दिनों उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी  ...थकान प्रतीत हो रही थी , खाना भी भली प्रकार नहीं खा पा रही | आज उसे एक - दो उल्टियां हुई हैं , 'ओह ! उस दिन आइसक्रीम अधिक खा ली थी  ; ये उसी का नतीजा है', ऐसा सोचा प्रज्ञा ने ,.. .....पर  निखिल उसे डॉ. को दिखाने ले गया ..वह  प्रज्ञा का पीला पड़ा मुखमंडल देखकर चिंतित था ......हिल स्टेशन की लड़की , यहाँ  मुंबई  आकर कुम्हला  सी गयी है ....कहीं जोंडिस ना  हुआ  हुआ  हो !!
                डॉ पारीख ने प्रज्ञा का चेक-अप किया , रिपोर्ट देखी ...'  काँग्रेचुलेशंस ! मिसेज वल्दिया ; आप माँ बनने वाली हैं ' ,  | निखिल ये खबर सुन चहक उठा |      प्रज्ञा ये खबर सुनने के लिए कदापि तैयार नहीं थी , उसे झटका सा लगा ..जरा भी खुशी नहीं हुई उसे ..' हम्म अपने पीरियड की डेट कैसे भूल गयी मैं ! .........कहाँ भूल हो गयी मुझसे ! ' सोच में डूब गयी प्रज्ञा , अभी तो मेरा एम. बी . ए . भी पूरा नहीं हुआ ..और मुझे कैरियर बनाना है पहले' ,  .....उसने घर आकर निखिल के सामने अपने विचार जाहिर  कर दिए  , ' निखिल ! मुझे अभी माँ नहीं बनना है ; मुझे अपना कैरियर बनाना है , बच्चे तो बाद में भी हो सकते हैं ', ....निखिल यह सुन सकते में आ गया ...' ये क्या कह रही हो तुम !! जब ये बच्चा आएगा ; तुम्हारा एम. बी . ए . पूरा हो चुका होगा .....कैरियर एक - दो साल में भी बना सकती हो ',    ' नहीं !! मुझे  अबोर्शन  करवाना है ', नादान  प्रज्ञा आँखों में आँसू  भर  दृढ़ स्वर में बोली ........., ' तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो प्रज्ञा ? जितना तुम्हारा इस बच्चे पर हक है उतना मेरा भी ; तुम नहीं कराओगी एबोर्शन !!! निखिल विवाह के पश्चात् पहली बार कठोर स्वर में बोला था प्रज्ञा से ...........| सारी रात प्रज्ञा सुबकती रही थी ............| प्रज्ञा की जिद के आगे  आखिर निखिल को झुकना पड़ा , डॉ ने उन्हें बताया कि पहला अबोर्शन खतरनाक हो सकता है ,  फैलोपियन ट्यूब बंद होने से ; आगे माँ बनने में बाधा भा आ सकती है  |  प्रज्ञा ने डॉ . की बात दरकिनार रख अबोर्शन करवा लिया |
             घर आकर प्रज्ञा ने  संतोष  की साँस ली है ..पर निखिल   उदास था  | आठ - नौ दिन की छुट्टियों और आराम के बाद प्रज्ञा ने वापस ज्वाइन कर लिया  | इस बीच निखिल ने स्वयं  प्रज्ञा का खास ध्यान  रखा था  और मेड से   भी कह उसे समय - समय पर जूस , दवाइयों  देने के लिए समझा दिया था | धीरे - धीरे प्रज्ञा स्वस्थ हो गयी | निखिल का स्वभाव इधर चिडचिडा सा हो गया है , वह प्रज्ञा  की ओर से लापरवाह सा हो गया ..दोनों के बीच एक ठंडी अबोली रेखा खींची रहती है ......प्रज्ञा ने निखिल  का कहना नहीं माना , शायद यह उसी का नतीजा था  .....खैर प्रज्ञा अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी  |
           निखिल  के सर्विस के शेड्यूल पहले ही अटपटे थे , प्रज्ञा अपने प्रति निखिल  की रुखाई देख दुखी थी , .........कभी - कभी वह उससे    शिकायत भी करती  , निखिल  उसे दो टूक उत्तर दे देता  ' ये तुम्हें विवाह से पहले सोचना चाहिए था कि मेरी जॉब कैसी है ; मेरे टाइमिंग तुम्हारे अकोर्डिंग नहीं चल सकती ', .........' हम्म ; ये वही निखिल है जो पहले इस प्रकार की शिकायत करने पर उसे कितने लुभावने से प्रस्तावों से मना लेता था , एक पल में नाराजगी दूर हो जाती थी प्रज्ञा की, ...........'काश ! फिर से ऐसे ही मनाये उसे निखिल , मेरी एक बात की कितनी बड़ी सजा दे रहा है मुझे !! ', ....प्रज्ञा घुटकर रह जाती ...........|
      प्रज्ञा का एम. बी . ए . पूरा हो चुका था  ....और एक प्रतिष्ठित कंपनी में उसकी जॉब भी लग गयी है...दोनों का जीवन बस ,....चल रहा था  | जॉब मिलते ही प्रज्ञा बहुत व्यस्त हो गयी थी  , अब तो दोनों  के पास  एक दूसरे के लिए बिलकुल भी समय नहीं था जैसे !  मशीनी जिंदगी जी रहे थे  दोनों  , बस गनीमत थी कि प्रज्ञा की जॉब मुंबई में ही थी  .....|
         दोनों के बीच एक छोटी दरार, खाई का रूप लेते जा रही थी ....|निखिल  के अत्यधिक व्यस्त रहने पर प्रज्ञा शक्की हो गयी थी  , उसे लगता ;अवश्य निखिल का कही अफेयर चल रहा हैं |  भावुक निखिल प्रज्ञा की अबोर्शन वाली बात से अभी तक आहत था  , उसे समझ नहीं आ रहा आगे चलकर प्रज्ञा जब भी माँ बनेगी कैसी माँ साबित होगी  और वो जाने - अनजाने प्रज्ञा के प्रति उदासीन होता  चला गया | प्रज्ञा  अपने पति की बेरुखी सहन   ना करने से विद्रोही होती  चली गयी   ,  अब वह अपने मित्रों के ग्रुप की हर पार्टी अटेंड करती थी  बिना निखिल  के ही, ...अब निखिल  और प्रज्ञा दोनों एक दूसरे   को जलाने के कोई अवसर नहीं छोड़ते | नादान ! एक दूसरे से प्यार करते  थे  तभी तो दोनों के ह्रदय    ने भले ही  अपने -अपने  दरवाजों को कसकर बंद करने का प्रयास किया हो ..... पर दोनों के मस्तिष्क में उथल - पुथल चलती रहती थी  | प्रज्ञा विद्रोही   होती गयी एक दिन उसने   क्रोध में निखिल से कह ही दिया ' तुम्हारा जरुर कही अफेयर है ; इसलिए तो मुझे इग्नोर  करते हो तुम !!........,  पहले से ही चिडचिड़ा निखिल  अपना आपा खो बैठा और उसने प्रज्ञा को तमाचे जड़ दिए , प्रज्ञा हतप्रभ रह गयी , उसने सोचा भी नहीं था एक पढ़ा लिखा  व्यक्ति ऐसी हरकत कर सकता है |.......स्वयं;   प्रज्ञा  ने जो चरित्रहीनता का  आरोप लगाया था निखिल पर , ये क्या कम था !! ..........पर दोनों को अपनी कोई भी गलती नजर नहीं आ रही थी .......|
              कुछ दिन बहुत टेंशन में बिताये प्रज्ञा ने , निखिल भी अपसेट था ,... उसे प्रज्ञा    के प्रति  अपने व्यवहार  पर  शर्मिंदगी थी  , ..पर  उसका इगो उसे प्रज्ञा से क्षमा नहीं मांगने  की इजाजत नहीं देता  था  .... | इधर प्रज्ञा अभी भी सोचती थी  ' काश ! एक बार निखिल  उससे क्षमा मांग ले | दोनों में से कोई नहीं झुका ...प्रज्ञा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक कठोर कदम उठाया  ....बस ; सोच लिया  उसने ; अब नहीं रहेगी वह निखिल के साथ ...बहुत हो चुका ..| प्रज्ञा के खास मित्रों ने उसे कितना समझाया , निखिल  आश्चर्यचकित तो था  पर मुड़ने को तैयार नहीं ..जबकि  इस समय उसे अपनी अप्पू दी बहुत याद आई ,..........   जब अक्टूबर में वे  दोनों प्रज्ञा और निखिल नैनीताल और रानीखेत गए थे तो प्रज्ञा के अबोर्शन वाली बात ;  पति - पत्नी के बीच वाली बात है , सोचकर छुपा गया था वह  अपनी अप्पू दी से ......|
                  दो दिन नैनीताल और दो दिन रानीखेत ,  बस पांच दिन ही छुट्टियाँ  लेकर आये थे दोनों |   नैनी ताल में प्रज्ञा के घर टूरिस्ट मेहमानों का जमावड़ा तथा रानीखेत में निखिल की बहनें और उनके बच्चों की धमाचौकडी में दोनों के परिवारों को पता ही नहीं चल  पाया कि निखिल -प्रज्ञा के बीच कुछ ठीक नहीं  नहीं चल रहा | आज निखिल ने प्रज्ञा की बात सुनकर अप्पू दी को फोन कर दिया था  , यह सुन अप्पू दी दौडी - दौडी आ पहुंची  दिल्ली से  , उन्होंने प्रज्ञा की माँ को भी फोन कर दिया था  ...शायद माँ प्रज्ञा को समझा पाए |  नैनीताल से प्रज्ञा के माता - पिता भागकर चले आये थे पर निखिल और प्रज्ञा दोनों ने आरोप और प्रत्यारोप के बीच स्वयं को निर्दोष बताया  , सबके  बहुत समझाने पर  ,  अंतत:   दोनों लगभग मान गए थे  |
                  बस दो - चार  दिनों बाद ही प्रज्ञा  को निखिल  की  फिर ना जाने कोई बात चुभने पर  निखिल के तमाचे   और अपने अपमान की छटपटाहट याद हो आई , अब उसे कोई नहीं रोक  सकता  इस घर में ,........वह वर्किंग -वीमेंस  होस्टल  चली आई  , अबकी निखिल  ने उसे नहीं रोका .....दोनों  में  प्यार से अधिक ' जिद ' हावी हो गयी थी |
          यूँ ही दिन -महीने और साल बीतने लगे ......दोनों के परिवारों ने लाख कोशिशें कीं ...सब बेकार |  कर्नल महरा ने बिस्तर पकड़ लिया था , उन्हें अब प्रज्ञा का ' मंगल ' अपनी आँखों के आँसुओं  में  साफ -साफ नजर आता |  अप्पू दीदी, निखिल से खासी नाराज थीं  , अपने लाडले भाई की गलती पर उसे क्षमा करने को तैयार नहीं |  निखिल अपनी राह और प्रज्ञा अपनी राह ..............|  दोनों परिवारों ने चाहा कि अगर दोनों दुबारा एक नहीं होना चाहते तो तलाक ले फिर से घर बसा लें , आखिर जिंदगी भर अकेले कैसे रहेंगे !! ............प्रज्ञा ने कह  दिया कि एक विवाह कर अनुभव हो गया है उसे ..., कोई उससे तलाक और विवाह की बात ना करे |  निखिल का मानना था कि वह भी यूँ ही बिता लेगा जिन्दगी !
                     अब  प्रज्ञा बहुत समय से विदेश में थी  , बीच में कई साल तक तो निखिल चुपके - २ प्रज्ञा की खबर लेता रहा ..पर बाद में सारे साथी इधर -उधर हो गए |
                     आज फेसबुक पर ' प्रज्ञा महरा '   को देखकर उसकी सारी यादें हरी हो आई हैं ,     'तो मेमसाहब ने अपना फेसबुक नाम में 'सरनेम' मायके वाला लगाया है  ...इसका मतलब प्रज्ञा ने अभी कोई दूसरा साथी नहीं ढूँडा  है ' , .......      निखिल को  अब   लगता है सारी की सारी   गलतियां  निखिल की ही थी ..'काश ! मना ही लेता प्रज्ञा को ...' ,एक उदास मुस्कान के साथ निखिल ने अपनी प्यारी दीदी को फिर से फोन लगाया है ........... |
                    क्या प्रज्ञा- निखिल फिर मिलेंगे !!!
   
          

Friday, 27 July 2012

कितनी क्रिएटिव हो गयी हूँ मैं फेसबुक में आकर .......एक कुमाऊंनी कविता :))

ओ ! ईजा मी कतु क्रिएटिव है गयु
मील बने  हाली ग्रुप चार
जके मन आ एड कर दिन्युं
फोटो ले खींच दिन्युं दुई चार
मैं कतु क्रिएटिव है गयुं

रोज एक नोट लिख्ननियुं
आपण रचना में सबुके टैग कर दिन्युं
उनरी वाल हैक कर दिन्युं
ओ ! ईजा मैं कतु क्रिएटिव है गयुं

पैली दिभर आराम कर छी
अब चिंतन - मनन कर नियुं
बौद्धिक वर्ग कै मित्र बने बेर
मी कतु बुद्धिमान है गयुं

मेड ले मेरी खुश हरे
मेमसैप कमप्यूटर में घुस रे
मनमौजी काम करण लाग रे
मी ले वैक लापरवाही इग्नोर कर नियु
ओ! ईजा मी कतु क्रिएटिव है गयुं
 
फ़ालतू चैटिंग मीके भल नी लागन
चुपचाप ऑफलाइन है बेर
सबकी वाल मे नजर धर नियुं
आपुके एलीट दिखिनियुं
ओ ! ईजा मैं कतु क्रिएटिव है गयुं

आपण पुराण शौक रिवाइव कर नियुं
साड़ी पेरण भूल गेछी
अब फिर साड़ी पैरनियुं
सबुके प्रोफाइल पिक बदलणक
बिमारी लगैनियुं
ओ! ईजा मी कतु क्रिएटिव है गयुं

कुमाऊंनी बलाण में पैली  कतु अटकछी मैं
' लोहनी ज्यूक ' कृपा ले अब कविता
लिखण कोशिश कर नियुं
अब तो मिके चश्म ले लाग गो
मी कतु  इन्टेलैक्चुवल दिखिनियुं
ओ! ईजा मै कतु क्रिएटिव है गयुं

-- मूल कविता ' फेसबुकी गयुं ' लोहनी जी की लिखी हुई है , उसी से प्रेरित होकर  मैंने  यह कविता लिखने की कोशिश की है ...' श्री भारत लोहनी जी का आभार ||

Wednesday, 20 June 2012

शब्द तुम्हारे

मिथ्या मित्र 
मिथ्या शब्द 
मिथ्या ये दुनियां 
फिर क्यों चले आते हो 
जब - तब इस दुनियां में 
झूठ कहा था तुमने 
सच तो ये है 
कहीं  ना कहीं 
सच हैं 
झूठ में जीती ये दुनियां ....

कुछ विचारों का आना .....

   १  - ख़याल ओढ़े नहीं जाते बस ' घर ' कर जाते हैं |

   २- हमने छोड़ दिया हैं मित्रों पर हक ज़माना ,......क्या जाने कब  ' मूड खराब ' हो उनका  |

   ३-तुम्हारा आना , भीगोकर मिट्टी , इत्र महकाना और यूं चले जाना ....तुम कितनी जल्दी में थे बादल !!

   ४- तुम्हारा यूँ चुपचाप आना  और  चुपचाप चले जाना ....ढूँढनी पढ़ती हैं पदचापों की निशानियां.....|

   ५- यूकिलिप्टस की भीगी  छाल की खुशबू ,हरी कोंपलें , देती हैं तुम्हारे बरसने के सुराग  |

Sunday, 6 May 2012

तब से अब तक ..ना जड़ ना टुक तक

छोटी गितुली ने कर ली हैं सारी राइम्स याद
जब-तब शुरू हो जाती है टेपरिकॉर्डर की भांति
कमला की जुड़ती भवें देख
उसके पिता ' पंतजी' की हैं नींदें गायब
कौन समझाएं उन्हें कि अपनी ' काजोल ' भी बिलकुल ऐसी है
छोटे मुक्कू ने हाथ से बने ' लकड़ी के बैट से '
'झड़ा ' दी हैं सारी खुबानियाँ
अब कैरम में निशाने पर हैं उसके  गोटियाँ
भट्टजी ने अपने 'अंग्रेजियत ' के अंदाज से
फिर पुकारा है बच्चोँ को
' चिल्ड्रेन ! टूम कहाँ को जाटा हाई ? ''
सामने' हिमालय 'अचल वैसा ही हैं
ठण्ड का इशारा देख ..रखवा ली हैं
' बांज ' के कोयले की चार बोरियां ..साहब ने
' सैप  ! य आपुल ठीक करो '
कह रहे हैं साथी
'स्नो-मैन'बनाने की ख्वाइश लेकर बच्चों ने
ताज़ी बर्फ के  गलीचे  को लपेट लिया है गोलों में
माँ ने बनाये हैं गुड़ - तिल के लड्डू
घी अधिक खाने से
सॉलिड हो गयी हैं अंजू और दीपा
फैशनेबल छोटी लड़की को आज फिर
चिढ़ाया है उसकी ' आमा' ने -
' ओ ! टर्कुली हो गया तेरा मिजात पूरा !! '
सुनीता , रेखा,  गुड्डी ,विनीता ,कमला
सब  लटक  गयी है पेड़ों पर
चूडीदार पायजामा पहने
ठीक घुटने के पास
फिर से फटेंगे सब के पायजामें
मासूम सी दिखने वाली शरारती छात्राओं  ने
दिया है फिर से एक नया नाम
अपने  गुस्सैल , खुर्राट कृषि टीचर को - 'कृषि बुड्ढा'
हरिराम का आज कामचोरी का मन है
पूछ रहा है बच्चों से
' मीमसैप ' कहाँ हैं ? '
प्यारी गुड्डी ने बनाये हैं शक्करपारे
आंटियां  दे रही हैं आशीर्वाद
' भलो बर मिलल ! '
लड़के , पुरातन काल से शरारती
उछाली है लड़की की ओर एक कागज़ की गेंद
जिसे आग्नेय नेत्रों से, लड़की ने कर दिया है भष्म
फेसबुक पर पुराने दोस्त आजकल बन गए हैं
मिस्टर इंडिया और मिसेज इंडिया
साइलेंट मोड पर
सब अपनी धुन में मगन
ऐश्वर्या का मोटापा ,सचिन , रेखा , आमिर की
नयी पारियां बनी हैं हॉट टॉपिक
बालीवुड में है पिछले साल से
' बेबी शावर ' की धूम
'दिल से दिल्ली और धड़कन से लन्दन वाली कैट' पर
आ गए हैं सब युवाओं के दिल
फैशन के आकाओं ने फिर से उकेर दिए हैं
गाँव और गाँव की गोरियां  कपड़ों पर
टीवी . पर मचा है संग्राम
डांस के बाप काट रहे हैं सबके कान
ए.यू . में आजकल छात्र उधेड़ रहे हैं
वी.सी . और डी.एस. डबल्यू की बखिया
फेसबुक पर छाई हैं मिसेज शर्मा और मिसेज मल्होत्रा की
ओजस्वी नारीप्रधान कवितायें
ये भी तो बड़ा सवाल है !
कौन बनेगा राष्ट्रपति !!
फेसबुकियों को कहीं चैन नहीं .....


नोट - इसमें कई कुमाऊंनी शब्द हैं |
 झड़ा = गिरा , बांज = ओक ट्री , सैप = साहब , मीमसैप = मेमसाहब , मिजात = फैशन , आमा =दादी , य आपुल ठीक  करो = ये आपने अच्छा किया ,भलो बर मिलल = अच्छा वर मिलेगा , टुक = सिरा



Wednesday, 18 April 2012

आवश्यक है

एक आँसू अभी भी है
कहीं छुपा हुआ सा बरौनियों के बीच
गिरने देना नहीं चाहती आँख उसे
यादों में बसाए जाने के लिए
अत्यधिक मिठास के साथ एक नीम की पत्ती की
कड़ुवाहट भी आवश्यक हो जैसे
सारी उम्र के  लिए मिठास को सहेजे जाने के लिए
उलझनें बेचैनियां जरुरी हैं
एकरसता जीवन की हटाने के लिए
एक सैलाब का आना आवश्यक हो जैसे
धडकनों की परीक्षा के लिए......



Tuesday, 28 February 2012

आज दर्द कुछ कम हुआ

     आज दुबारा वही दृश्य है , सड़क के दोनों ओर कड़ी  - करारी  ताजी कटी गिट्टियां पड़ी हैं |  कई मजदूरों के साथ पूरा - का पूरा कुनबा   तत्परता से कार्य कर रहा है  , छोटी लड़कियों ने सड़क किनारे ही  रसोई के  पतीले संभाल रक्खे हैं , देखती हूँ साथ में एक ६-७ महीने का नन्हा बच्चा उन गिट्टियों में घुटने के बल चलता - गिरता जा रहा .......|
                हुआ यों कि कई महीने पहले मुझे कंकरीली सड़क पर एक माँ और उसका छोटा बच्चा दिखा , बच्चा घुटने के बल चलता जा रहा था और माँ खाली हाथ उसके पीछे जा रही थी , यह देखकर मुझे मन ही मन उस माँ पर गुस्सा आ रहा था  ..कैसी माँ है बच्चे को गोद में  तो ले लेती  .........पर अचानक   मैं अतीत में चली गयी ......................|                                                               
                             ' ऐय बहूरानी जी  !  आप ही माँ नहीं ना बनी हैं  इस संसार में अनोखी , बच्चन को जमीन पर   नाहीं  धरा जायेगा तो       कईसे   ताकत आवेगी सरीर  मा !!     , ..... मेरी मुंहलगी मेड ' मीनू  की अम्मा'  ने बड़े अधिकारपूर्वक मुझे उलाहना दिया ;  और मैं मुस्कुराकर रह गयी ..| वो मुझे समझाती ही रह गयी ....|
       असल में बेटे की पैदाइश गर्मी की है और भयंकर ठण्ड   कोहरे वाले  दिसम्बर  में  १५ के बाद जब उसने घुटने के बल चलना शुरू किया , मैं उसे बिलकुल भी फर्श पर नहीं छोड़ती  थी ..कहीं उसके  घुटने छिल गए, ...  कहीं उसे ठंड लग गयी तो !!  ..... ..     बेड या दीवान पर ही वह घुटने के बल थोड़ा सा चलता ...|  एक दिन  जब मैं किचन  में थी , मुझे   अंदर  से जोर से  किलकारियों की ध्वनि  सुनाई दे  रही थी ; ...मैं  दौड़ते हुए गयी  ........देखती हूँ ... मीनू ने  उसे फर्श पर छोड़ा है  और वह पूरे घर में घुटने के बल दौड़ लगा रहा है और बहुत खुश है ...........; यह देखकर मैं भावविभोर हो उठी ....मेरा सारा डर - चिंता  दूर हो गयी थी ,...कितनी नादान ,  नयी- नयी    और अनाड़ी माँ थी मैं !!   जो  अब तक अनजाने में स्वयं को इस खुशी से दूर रखे हुए थी |
          महीनों पुराने दृश्य की आज पुनरावृति हो रही थी ,तब सड़क कंकरीली थी; आज तीखी गिट्टियां हैं ....बच्चा भी उतना ही छोटा है , .. माँ  कार्य कर रही थी पर बच्चे की घुटने की बल चलने की कोशिशें जारी थी ..............मुझे दर्द पहले से कहीं कम हुआ बच्चे की कोशिशें देख मैं अंदर ही अंदर खुश थी , तीन दृश्य साथ-साथ चल रहे थे ....|



नोट - इलाहाबाद में घर की मालकिन को ' मेमसाहब ' या मैडम जी बोलने का रिवाज नहीं है , यहाँ पर आदरपूर्वक उन्हें ' बहूजी '   या 'बहूरानी जी  ' बोला जाता है |
बच्चा - छोटा बच्चा 
बच्चन - बच्चे 

Monday, 27 February 2012

लिख ही दूँ

क्या लिखूं , कैसे लिखूं
 अपने शहर के फेफड़े के बारे में
जिनमें हैं अनेक शाखाएं ....
लिखूं  इन लघु -दीर्घ ,
 पत्तियों के बारे में, जो अभी भी झर रही हैं
लहराते हुए झरने की भांति
या कब्र की देखभाल करते उस व्यक्ति के बारे में ,
जिसे आज पहली बार देखा है ;
 गिलहरियों और चिड़ियों को ' पारले G ' खिलाते हुए
या खर - खर की  झाड़ू की  आवाज के साथ ,
सड़क स्वच्छ करते उस व्यक्ति के बारे में
जो निर्विकार भाव से अपने कार्य में खोया है .....
या फिर उन तीन गिलहरियों के बारे में जो ,
धमाचौकड़ी मचा रही हैं ;
 वृक्षों से सड़क  और सड़क से वृक्षों तक  ......                                        
या उन मालियों के बारे में ,
जिन्होंने कुदरत के साथ मिलकर
सजा दिए हैं बेल-बूटे हरे गलीचों में....
या फिर उस गाढ़े धुंवे की कहानी कहूँ ,
जो सूखी पत्तियों के जलने के  बाद
प्रतीत होता है अनंत को जाते हुए
या सिल्वर और नारंगी रंग से रंगी तोपों के बारे में कहूँ ,
जो आजकल  बच्चों का  घोड़ा बनी हैं                                  
या भव्य पब्लिक लायब्रेरी के ऊपर
पूरी बिरादरी के साथ जुटे कौवों  की
काँव - काँव लिखू ,
जो आस-पास ही  सजे किसी
महाभोज के लिए जुटे हैं
असमंजस में हूँ .........
  पर  सोचती हूँ
न ही लिखूँ कुछ
इन फूलों की कहानी -
इनकी  ही  जुबानी
 बेहतर रहेगी
कुछ पलों का सुकून तो देगी  ,
 तनाव भरी जिंदगी से ............     
                                                       


Saturday, 18 February 2012

खुशियाँ

 अनजान विचारक की
 व्याख्यान की टोकरी से
 स्थिति को भांपकर
 ईमानदारी ,नीयत और
 सकारात्मक चिंतन का
 डाला है  अचार ,बरनी में
मिला दिए हैं
भरोसे और मुस्कराहट के
 मसाले
एक सफेद कपड़े में
काढ़ने  हैं ठहाके
बस बंद कर  देना है
बरनी को उससे
अनोखा अचार
तैयार हो
एक  नयी सोच देगा
 मुश्किल पलों में
खुश रहने के लिए

Thursday, 9 February 2012

अभिलाषा

 मनीष मल्होत्रा
सब्यसांची
भानु अथैया या
अबू- जानी
इन सबसे नहीं
बल्कि
किसी कुमाऊंनी से कराएगा
कुमाऊं का सबसे आकर्षक
' राजकुमार मालूशाही '
अपने कपड़ों की डिजायनिंग
साथ  ही  'राजुला' की भी
'राजुला ' जो है उसकी प्रेमिका
जो एक सामान्य व्यापारी की है पुत्री
राजुला जिसका रंग है जैसे
दूध में घुला हो  देशी गुलाब
छोटी पर सुडौल नासिका
छरहरी काया
जिस पर  अभी -अभी
यौवन ने दस्तक दी है
काजल से भी अधिक काले
लेकिन सीधे  लंबे बाल
चमकीली पनीली काली आँखे
स्निग्ध बच्चोँ सी त्वचा
बीच की मांग निकालकर
बाल बनाने से उसका गोल मुँह
जैसे लगने लगा है और भी गोल
उसके लिए सोचा है कुमाऊँ की डिजायनर ने
गुलाबी छींट और हरे - पीले फूलों वाला
अति-घेरदार घाघरा
एक सामान्य श्वेत पतली लेस लगी है
जिस पर बार्डर से  ठीक एक बालिश्त ऊपर
 भूरे मैना के पीले पैर के रंग जैसी
 कमर तक की कुर्ती जिसके कालर मे है फ्रिल
उसके ऊपर  पहनेगी वह
 बिलकुल डार्क गुलाबी  नन्ही  चुस्त  वास्कट
और चुनरी या पिछौड़ा है  सामान्य सूती  बसंती रंग का
पैरों मे भेड़ के उन की बुनी जूतियाँ पहनानी है उसे
     और गहने !!
गहनों के लिए दूसरी सिटिंग मे बात करती हूँ उससे
पर जहाँ तक हो  गहने केवल चाँदी के होंगे
जिनका लुक भारी चाँदी के गहनों सा होगा
तब तक बिना गहनों के ही साधारण कपड़ों में भी
 दिख रही है राजुला एकदम ' बर्फ वाली परी' .........
राजकुमार के लिए एक सुनहरे धूल की रंग की चुनी है शेरवानी
जिस पर है 'लखनऊ के कारीगरों 'ने
कढ़ाई की है ' जरदोजी' की
गहरे धूल के ही रंग का  है  रेशमी  चूडीदार पायजामा
लंबे कद और गेहूं के रंग वाले छरहरे राजकुमार पर ये
खूब जमेंगे
बस एक गहरे लाल गुड़हल के पुष्प की रंगत का उत्तरीय
गले पर लापरवाही से झूलेगा
कमर पर लटकी नक्काशी के केस वाली तलवार भी है
जिसका मूंठ दूर से ही चमक बिखेरेगा
घनी मूंछों वाले आकर्षक
मुखमंडल के स्वामी के
उन्नत मस्तक  पर
अंगूठे से ऊपर की लय में
 तिलक लगाया जाना
बाकी है
जो ठेठ कुमाऊंनी  'पिट्ठयां ' से लगेगा
जिस पर बहुत सारे अक्षत  जड़े  होंगे
 ' देहरादून  की बासमती चावल' के
'मालूशाही ' के बाल है कुछ -कुछ घुंघराले
कन्धों का स्पर्श करते प्रतीत होते हैं
जो काढ़े  गए हैं ऊपर की ओर
  शालीन और सौम्य बना रहे हैं उसे
उसके मजबूत पैरों के लिए
  ' राजस्थानी  मोजड़ी' मंगवायी है जिनपर
लाल रेशमी और जरी से कढ़ाई है
साफा और  बाकी जेवरात  वह  स्वयं तय करेगा
अभी   उसके कानों मे कुंडल हैं जिन्हें उसने
कर्णछेदन संस्कार और यज्ञोपवीत संस्कार के साथ
धारण किया था
तब तक दर्पण मे निहार रहा है राजकुमार स्वयं को ..............

- कुमाऊंनी डिजायनर

Wednesday, 8 February 2012

स्वीट ड्रीम्स

अभी -अभी एफ बी से उठी हैं  वो
साढ़े दस ही तो हुआ है अभी
मैगजीन देखती हैं
उंहू पढ़ने मे मन नहीं लग रहा
अभी थोड़ी देर पहले उसने
एफ बी के मित्रों की
 सारी पोस्ट पढ़ डाली हैं
टीवी देखूं
नहीं ..कोई सीरियल नहीं देखना है उनको
कसौटी जिंदगी के अनुराग बासु
मिस्टर बजाज और मिसेज बजाज तक
प्रतिज्ञा से लेकर इच्छा तक
अच्छे सीरियल का अंत
कर देते  हैं कितना उबाऊ
सभी सखियों ने उसे अभी
  बोला है स्वीट ड्रीम्स
निंद्रा  माम  हैं कि
आने का नाम नहीं ले रही
कुशन टिका गर्दन घुमा रही हैं वो
अचानक से कहीं अतीत का
एक टीवी सीरियल चल पड़ा है
कहानियां ही कहानियों वाला
सुदूर  ढालू  छत वाला घर
 घर मे कई कमरे
पर कहानी की आवाज
माता - पिता के कमरे से आ रही है
अरे ये कहानी  तो रानी सुनीति सुरुचि और उत्तानपाद की है
 ओहो इस कहानी का कबाड़ा नहीं होने वाला है
 ये कहानी का अंत उन्हें पता है
 बैड पर  पिताजी सुना रहे हैं कहानी
दो कहानी सुनाने के बाद
 शायद तीसरी कहानी है
जो सुनाई जा रही है
छोटे  बच्चे को
माँ दूध के जग मे बोर्नविटा  डाल
सब  गिलासों  दूध  डाल रही हैं
वो  भी इस सोफे से
चुपके से आ बैठती है नमदे पर
लाल चटाई के ऊपर बिछा है
कश्मीरी कढ़ाई का नमदा
अपने हाथ -पैरों पर ग्लिसरीन लगाती
  गर्म अंगीठी के पास
कहानी ध्रुव की अटल प्रतिज्ञा पर
 समाप्त हो  तारा बन गयी है
और वो वापस है फिर सोफे पर
हाथों मे  है  कोल्ड क्रीम
अब उनकी आँखों में हैं  नींद के झोंके
बढ़ चले हैं  पैर
 शयनकक्ष की ओर ....


Sunday, 5 February 2012

मेरा शहर - इन दिनों

शहर मेरा उधड़ा - उधड़ा  सा है
लगता है जैसे डाइनासोर आकर कर गए हों उत्पात
या फिर  मचाई हो तबाही  टर्मिनेटर के  विलेन ने
कई लैम्प - पोस्ट आड़े-तिरछे पड़े आखिरी साँस ले रहे जैसे
बिखरी ईटें कातर पड़ी है जैसे कह रही हों
करीने से बिछाओ मुझे
सीवर के होल के ढक्कन  मल्टीपल फ्रेक्चर  से त्रस्त हैं
गिट्टियां फुटपाथ की कहती हैं
जरा धीरे पैर रखना हमपर  ....मोच आ सकती है तुम्हें
डिवाइडर जो कुछ महीने पहले चमचमाती
पोशाकों से लैस थे
मुँह छुपा  कराह रहे हैं
सिविल लाइन्स मे भूले से महिलायें
कार ले जाती है तो बस फिर
दम साधे कार मे ही ऊंट और घोड़े की सवारी
का आनन्द लेती हैं
सड़कें चीख - चीखकर शहर वालों को
अपने काया को जल्दी ठीक होने के लिए
 की गई दुहाई मे शामिल होने को कह रही हैं
वृक्ष नहाने को आतुर हैं ..अब बस
बहुत हो गया मिट्टी का  उबटन और पाउडर
फुटपाथ किनारे के सब्जी व फल वालों की रोजी मंदी है
टायर कराहते हुए  वाहनों के  शहर से गुजरते हैं
बाइक सवार भूल गए हैं फर्राटे भरना
क्रोधित सड़के उतार चुकी हैं कई बार उन पर गुस्सा
बस प्रसन्न हैं तो विशाल मॉल
विनायक मॉल और बिग - बाजार के पार्किंग  तल
सुरसा की भांति मुँह फाड़े  फुटपाथों पर अब कोई
वाहन पार्क करने का रिस्क नहीं उठाता
  अति  आनंदित हैं तो ठेकेदार...
 मुझे  चिंता  है  इस वक्त आने वाले पर्यटकों की
जो मेरे शहर की छवि को लेते जायेंगे हमेशा के लिए
क्यों कि ऐसा तो न था  मेरा शहर!!

Tuesday, 31 January 2012

उदास शाम
उनका इन्तजार
खट-पटाते
 उलझे पीत  शब्द
अनमने बीमार

[ जापानी कविता ' तांका ' पर आधारित ]

Wednesday, 4 January 2012


हाइकु

घिरते मेघ
मुकुट श्वेत पर 
मुग्ध ह्रदय 
       *
स्वप्न शेष 
रहा स्मृति बन यूँ 
हर्षित मन 



Monday, 2 January 2012

हाइकु

शिखर तुम
वीरान लगते हो
बरफ बिन
     *
गजरे में हो
महक बने तुम
अर्थी में आंसू
      *
तुम आलोचक बन
'जिंदगी' नाम के
 मेरे इस चलचित्र की
 देना आलोचना
मध्यांतर से पहले और
मध्यांतर के
बाद की कहानी में
मेरा अभिनय ,
मेरी संवाद अदायगी
कितनी खरी उतरी हूँ में
तुम्हारे तीनों नेत्रों
निर्देशन में ' भगवन्'.......