Sunday 18 November 2012

तीन ' तांका ' [ जापानी विधा ]

कोई कशीदे
नहीं काढे ना रची 
कोई रचना 
बस खीझते रहे 
ख़याल यूँ ही मेरे 


      * 
तुम्हारा आना 
सरदी  की मोहिली 
धूप सा लगा 
बस बोल अबोले 
गुमसुम से रहे 

       *
उबते रहे 
इन्तजार के पल 
रुखसत भी 
होते  गए  यूँ बिन 
ठहरे बिन कहे

Tuesday 6 November 2012

नवरात्र में लिखी एक कविता

दुर्गुली सीख रही है 
तीर को निशाने पर 
लगाने के गुर 
ललिता ने उडाएं हैं 
कागज़ के जहाज 
बनना है उसे पायलेट 
नैना ने 
डलवा दिया है 
आँगन में नेट 
बनना है उसे 
अगली साइना 
कात्यायनी ने 
थाम ली है 
पिता की बंदूक
आर्मी की लगन है उसे 
पार्वती ने
 मना कर दिया है
बर्तन मांजने से 
फ़ालतू घूमते 
भाई से मंजवा लो बर्तन 
माँ को दिया है मशवरा 
उसे पढ़ना है 
पायथागोरस और आर्किमिडीज 
सरस्वती ने अभी -अभी 
रची हैं नयी कविता 
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उस पाँच साल की 
गौरी की माँ ने भी 
लिया है नया फैसला 
कन्यापूजन में भेजने 
के बजाय वह भेजेगी 
बेटी को
 कल से कराटे 
की कक्षा में .............