Sunday 28 June 2015

लघुकथा


  • चटाक ! ' रुको माही .. गेहूँ छू ली तुम !! '
    दादी ने भवें चढा बुरा सा मुँह बना , कर्कश आवाज में माही को फटकारते हुए एक करारा चाँटा रसीद किया |
    परात पर सूखते ये गेहूँ ' नौ कुँवारी नन्हीं कन्याओं के भोजन ' के लिए थे .........