अपहरण के बाद
देती हूँ अग्निपरीक्षा
आत्महत्या करने पर
धरती माता की गोद में
उठा लेने के कथन से
स्वर्णाक्षरों में विभूषित होती हूँ
कोई कुसूर ना होने पर भी
शापित शिला बन जाती हूँ
कभी अपनों के सामने सभा में
की जाती हूँ अपमानित
कभी कन्या के पैदाइश का
बन जाती हूँ कारण
कभी गर्भाशय की दीवारों से
उखाड़ दी जाती हूँ
उगने से पहले
कभी घटाघोप पर्दों में
घुट-घुटकर जीने के लिए
कर दी जाती हूँ मजबूर
कभी दूसरी औरत
होने का उठाती हूँ दंश
मार दी जाती हूँ
अपने ही प्रेमी द्वारा
कभी नॉच ली जाती हूँ
दरिंदों के बीभत्स इरादों से
निर्जीव लाश बन
जाती हूँ ताउम्र
कभी निर्मम दुनिया से
ले लेती हूँ विदा
किसी की करनी
भुगतते हुए
मैं कोई 'इंसान' कहाँ हूँ !!
बस एक ' स्त्री ' हूँ .............
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