Thursday 6 December 2012

यूँ जिन्दा रहना

जिन्दा रहती हैं
हर स्त्री के भीतर कई
लड़कियां
निश्छल बचपन की
गुड्डी,मन्नू,मिनी ,टिनी
से लेकर
कब्बू ,मुन्नी ,नन्हीं ,पम्मी तक
छींट के झालरदार फ़्रोक से लेकर
नायलेक्स के पाइपिंग वाले फ़्रोक तक
बाटिक प्रिंट और खादी प्रिंट के
 कफ्तान से लेकर
मनोहारी चूड़ीदार तक
नयी नीली डेनिम से लेकर
भूरी ढीली-ढाली कॉडराय तक
लकड़ी की बड़ी अलमारी से
निकाली गयी
माँ की सिल्क की साड़ी में
स्वयं को लपेटे जाने से लेकर
स्वयं की साड़ी मिलने तक
गोल बड़े डिब्बे के माँ के गहनों से
बड़ी नथ को पहनने के असफल प्रयास से लेकर
खुद के ज्यूलरी बॉक्स मिलने तक
अरमानों को लगा लेती है पंख
उड़ती जाती हैं
दोनों हाथों में
मायके की देहरी में
 उछाले गए चावलों में
 सुरक्षित रखती हैं स्नेह
बढ़ाती हैं पग
ससुराल के अनेक रिश्तों को
 एक साथ निभाने तक
जीती हैं कई जीवन एक साथ
स्निग्ध त्वचा से लेकर
महीन झुर्रियों के संसार तक
काले केशों से लेकर
चाँदी तारों के आगमन तक
बन जाती हैं अठारह साल की कन्या
अपनी सहेलियों के बीच
तो कभी ठिठोली कर आती हैं
मित्रों से
माँ बन स्नेह लुटाने से लेकर
दादी -नानी के अटूट सपनों के आने तक
अनेक ह्रदय को बसाती हैं
अपने एक छोटे से ह्रदय में ...........



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