Saturday, 12 January 2013

क्षणिकाएँ

सुना है
वो  लिखा गए
दस्तावेजों  पर
अपना नाम
जमीं पर लिखना
संभव न था
   
       *

हमारी चिरनिद्रा में
अग्नि -स्नान से पूर्व
कल-कल की ध्वनि
सुनायेगी संगीत
अविरल बहेंगे गीत
नश्वर शरीर होगा
पंचतत्व में
विलीन

    *

जल ! तुम्हारा
निरंतर वेग
जीवन की विषमताओं को
भी हर लेता है
आस्था की
एक डुबकी
लगाने भर से




1 comment:

  1. धन्यवाद ! दिव्या जी , बनारस के घाट पर एक शव को देख ' इन विचारों ' ने जन्म लिया |

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