Wednesday 30 January 2013

अबोलापन


ये सुन्दर वादियाँ 
जहाँ तुम नहीं 
तुम्हारी
 अबोली आवाजें 
पंछी बन 
चहचहाती हैं 
झरने कई 
लकदक से 
इठलाते हैं
या फिर 
मीठी नदी की 
स्वप्निल धुन  
नीली-हरी 
छाया के साथ 
लहर-लहर 
गुनगुनाती है 
तुम बस 
अनवरत यूँ ही 
जारी रखना 
अपना अबोलापन 
क्योंकि 
मुझे यही बोल 
भाने लगे हैं अब 

2 comments:

  1. खुबसूरत अभिवयक्ति...... .

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    1. धन्यवाद ! सुषमा जी ....

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