Saturday 26 January 2013

'प्रकृति '

प्रसून का कोई गीत
जावेद की कोई गजल
गुलजार की कोई नज्म
गुनगुनाती है जब भी जुबाँ
बादल भर लाते हैं जल
पक्षी कलरव मचाते हैं
ये अम्बर हो जाता है
अधिक नीला
नदियाँ करती हैं
अठखेलियाँ
दोनों हाथों में
 सिमट आती है
ये सम्पूर्ण
' प्रकृति '

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