फेसबुक पर अपनी मित्र प्रगति को सर्च करते हुए अचानक प्रज्ञा महरा पर निखिल की नजरें थम गयी , उगलियाँ रुक गयी .... 'हां प्रज्ञा ही तो है ये; वही चंचल आँखे , दूध सा रंग,पिनाज मसानी जैसे घुँघराले बाल , गालों के गड्ढे और गहरे हो गए हैं , वैसे ही गर्वीली ऊँची गरदन बस थोड़ा वेट गेन कर लिया है ; सोलह साल बाद भी प्रज्ञा वैसी ही है ', कैसे भूल सकता है उसे निखिल !!.........निखिल उठकर ड्रेसिंग टेबल तक गया , स्वयं को भरपूर नजर डाल सोचने लगा ....हूँ ..मुझमें भी कोई खास चेंज नहीं आया है बस बालों में थोड़े से चाँदी की तार झलकने लगे है ....पर क्यों देख रहा है वह वो खुद को !! ..........ह्रदय में एक गहरी टीस उठी ....सोफे में अधलेटा हो वह दोनों हाथ सिर के पीछे रख अतीत में खो गया ..............
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अट्ठाईस साल का निखिल वल्दिया हिंदी फिल्म के हीरो जैसा आकर्षक था , क्लीन शेव्ड चेहरा , छरहरा लंबा युवक था , राइट साइड से पार्टिंग कर बाल बनाने का तरीका उसे अपने मित्रों भिन्न बनाता ,अभी दो साल पहले उसने कमर्शियल पायलेट का कोर्स खत्म किया था और एक अच्छी कंपनी में वह कमर्शियल पायलेट था | जब भी वह उस कंपनी की पायलेट की ड्रेस पहनता तो कितना जँचता था !!
पिता रिटायर्ड एजुकेशन डायरेक्टर थे , रानीखेत में सैटल हो गए थे | रानीखेत में कालिका के पास शानदार बंगला था |
तीन बहनों के बाद निखिल बहनों का लाडला भाई ;....खासकर' मंझली दी' का मुँहलगा भाई था , मंझली दी से वह सब बातें शेयर करता ; बिलकुल दोस्तों की भांति ,सभी बहने अपनी - अपनी गृहस्थी में खुश थीं |
| माँ की तीव्र इच्छा थी कि अब निखिल का विवाह हो जाए |
'' इतनी जल्दी मत मचाओ माँ ; जब भी कोई कुमाऊंनी सुन्दर कन्या देखती हो; बस आपको उसमें अपनी बहू नजर आने लगती है; ...जिस लड़की से मेरी शादी होगी वह सुन्दर ही नहीं इंटेलीजेंट भी होनी चाहिए " , जोर की हँसी हँसते हुए उसने अपनी माँ से कहा | माँ को अपनी मर्जी बता दी थी उसने, ....' हाँ - हाँ तू फिकर मत कर ; ऐसी ही कन्या से करुँगी तेरी शादी, ...अप्पू से भी बोल दिया है मैंने ', माँ एक स्नेह भरी मुस्कान निखिल पर डालकर कहा |
अप्पू दीदी [ मंझली दी ] की ससुराल रैमजे अस्पताल के पास था | पर अभी वे दिल्ली रहती थी
| उनके पति वहीं थे | बड़ी और छोटी दीदी को निखिल के विवाह का इन्तजार तो था पर कन्या में ढूँढने में कोई दिलचस्पी नहीं थी ' नक्शेबाज लड़का ! पता नहीं हमारी ढूंडी लड़की पसंद भी करेगा कि नहीं....इसके लिए लड़की भी ऐसी ही नखरीली होनी चाहिए ',....दोनों बहनें आपस में बातें करती |
निखिल को स्वयं ही ढूंड लेनी चाहिए लड़की .... | निखिल को कुछ समझ में नहीं आता कई बार उसे आभास हुआ उसकी सह- पायलेट नीला ने कई बार निखिल के प्रति अपने आकर्षण को निखिल के आगे जाहिर किया पर ये शायद केवल आकर्षण है ; प्यार -व्यार जैसा कुछ भी नहीं , वैसे भी ...निखिल ने इससे आगे कुछ सोचा ही नहीं |
अप्पू दी ने आखिर अपने लाडले भाई के लिए उसकी पसंद की लड़की तलाश ली |
कभी कहा था उसने निखिल से, ' तेरे लिए चाँद का टुकड़ा जैसी लड़की देखूंगी रे ! ', उसे यकीन था निखिल को प्रज्ञा अवश्य पसंद आयेगी |
कर्नल प्रताप सिंह महरा , आर्मी से रिटायर्ड हो नैनीताल में बस गए थे ,उनका मन तो था देहरादून में बसंत -विहार में बसने का ; जहां अधिकतर फौजी ऑफीसर बसे थे पर प्रज्ञा को नैनीताल पसंद था ..फिर उसे ग्रेजुअशन के लिए एडमिशन भी तो लेना था, प्रज्ञा को नैनीताल जान से प्यारा था | प्रज्ञा का फाइनल ईयर था | ब्रुकहिल पर महरा साहब का छोटा मगर कलात्मक बंगला था , जिरेनियम , गुलाब और पिटुनियां और ग्रीन प्लांट से सजा हुआ ....छोटा लाँन , छोटा बरांडा , छतों के बार्डर पर लगे तराशे गए कंगूरे ...जब भी इनसे बर्फ पिघलती तो कंगूरे शीशे का आभास देते थे |कर्नल थे तो खुर्राट व्यक्तित्व वाले पर उनका ह्रदय मोम जैसा था , ......झील से उठते कोहरे , तेज भागते बादल , अचानक से आई बारिश , कोयल की कूंक , बर्फ के कंगूरे उन्हें बहुत लुभाते | यूँ कर्नल चाहते थे उनका दामाद भी एयरफोर्स या आर्मी से हो पर उनकी पत्नी ममता ने बिलकुल मना कर दिया, ...शुरू में तो कितना दूर रहना पड़ता है परिवार से फौज वालों को ...'पीस' में हो तभी फॅमिली ले जा सकते हैं | ' नहीं जी , कोई सिविलियन से करेंगे प्रज्ञा का विवाह ' , .......मिसेज महरा ने अपने पति से आग्रह किया था |
प्रज्ञा लंबी , दूध जैसे रंग वाली लड़की थी , उसकी बड़ी चंचल आँखे और गालों में पड़ने वाले गड्ढे उसे अधिक आकर्षक बनाते थे , उसके घुंघराले कंधे तक बाल यू शेप में कटे थे , बाल आगे आये या नहीं गर्दन झटककर बालों को पीछे ले जाना उसका स्टाइल ही बन गया था | अपने ग्रुप में वह सबकी चहेती थी |
नैनीताल की ऑक्सीजन ने उसे और भी आकर्षक बना दिया था | डैड की लाडली ' प्रज्ञा ', ...' माय लिटिल प्रिंसेस ' कहते थे उसे कर्नल साहब | प्रज्ञा उनकी इकलौती बेटी थी |
उस दिन प्रज्ञा को रु-ब- रु देखने का दिन चुना गया | दिल्ली से अप्पू और मुंबई से निखिल रानीखेत कल ही आ पहुंचे ...| अप्पू , उसके पति धीरेन्द्र , माँ , पापा और महाशय निखिल अपनी कार में सज -धजकर लद गए , कार नैनीताल की ओर रवाना हो गई | निखिल अभी जींस और टी -शर्ट में था , अप्पू दी के ससुराल पहुंचकर ये फैशनेबल लड़का फिर से तैयार होगा ...उसने सोच लिया था : ऑलिव - ग्रीन ट्राउजर और पिस्ता कलर की फुल शर्ट पहनेगा वह , आखिर आर्मी वालों के यहाँ जा रहा है ड्रेस कोड का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा उसे जबकि उसका मन था श्वेत टी - शर्ट और बस डेनिम जींस डाले ...कैजुअल उसे अधिक पसंद था | पर अप्पू दी के आगे उसकी एक ना चली | असल में दीदी को यह परिवार और प्रज्ञा इतनी पसंद आई कि वह नहीं चाहती उसके लाडले भाई को किसी भी छोटी - मोटी वजह से नापसंद किया जाए |
कर्नल साहब के यहाँ अफरा -तफरी मची थी , किचन और डाईनिंग रूम मे खास हलचल थी | महंगी क्राकरी से सजा था टेबल , कॉर्नर के टेबल पर इकेबाना से फ्लावर पॉट सजा था , ऑफ वाईट रंग की दीवारों वाला डाईनिंग रूम में शोख रानी रंग के परदे लगे थे ....अधिकतर शीतल रहने वाला नैनीताल में चटख रंग घरों को वार्म लुक देते हैं ...| ड्राइंग रूम लेमन रंग का था , यहाँ नन्हें -नन्हें मरून और पीले फूलों वाले परदे और पीली झालरें थीं पर्दों पर , बीच में शीशे की टेबल थी जिसका आधार चायपत्ती के पेड़ की झाड़ी से बना था , इसे कर्नल अपनी असम पोस्टिंग की निशानी कहते थे | क्रीम रंग के सोफे और गहरे मरूंन की कार्पेट थी पर उसकी आभा लाल आभास दे रही थी |
प्रज्ञा चाहती थी कि वो या तो चूडीदार और लंबा कुर्ता पहने या सिंपल जींस और सिल्क का बाटिक प्रिंट वाला छोटा गुलाबी कुर्ता , ..... पर फौजी डैड ! उनका आदेश था कि प्रज्ञा एकदम भारतीय लिबास पहने ...अतः प्रज्ञा ने अपने कजन के विवाह; जो नवम्बर में हुआ था , वही साड़ी निकाली ; कांजीवरम की प्लेन ग्रे साड़ी जिस पर ग्रीन , गोल्डन और रेड का बार्डर था | गोल्डन स्लीवलैस ब्लाउज के साथ खूब फब रही थी ; ग्रे साड़ी ...| अंत समय तक वह साड़ी पहन ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रही, ' ओह ! कधे में अच्छे से पिन लगा लूँ ये साड़ी वर्ना संभल नहीं पाएगी मुझसे ' , |
नियत समय पर लड़के वाले आ गए , प्रज्ञा ने गर्दन ऊँची रख , धीरे -२ मुस्कुराते हुए ड्राइंगरूम मे प्रवेश किया , निखिल तो उसे एकटक देखता रह गया !! ..........अपने दाहिनी ओर बैठी दीदी के कान के पास मुँह ले जाकर बोला ; अप्पू दी ! आपकी च्वाइस पर मुझे पूरा यकीन था ' .........फिर क्या था ये नखरे वाला लड़का, कम थोड़े ना था , प्रज्ञा को ये हीरो पसंद आना ही था | झटपट प्रज्ञा और निखिल ने एक दूसरे को पसंद कर लिया |
अभी पूरी तरह हाँ नहीं हुई थी , दोनों परिवार भ्रम में थे ; प्रज्ञा मांगलिक थी , कर्नल साहब थोड़ा सोच में थे पर डायरेक्टर वल्दिया इन सबमें इतना विश्वास नहीं करते थे , आखिर पंडित जी से इसका तोड़ पूछकर विवाह कर दिया गया | छोटा सा हरियाला रानीखेत, कुछ दिन निखिल - प्रज्ञा और मेहमानों से गुलजार रहा ....., फिर सब वापस अपने - अपने घर | निखिल और प्रज्ञा भी मुंबई आ गए , प्रज्ञा यहाँ केवल दो हफ्ते के लिए थी उसे वापस फाइनल परीक्षाओं के लिए नैनीताल जाना था | चार - पाँच दिन तो यूँ ही बीत गए अब निखिल को जॉब पर जाना था , टाइम -बे- टाइम की फ्लाईट , हालाँकि निखिल की पूरी कोशिश थी कि कुछ दिन उसे अपने मनपसंद शेड्यूल मिले | दो हफ्ते कैसे बीत गए ...लव - बर्ड्स को पता ही नहीं चला ..... |
प्रज्ञा वापस नैनीताल आ गयी थी |
दो महीने गुजर गए प्रज्ञा का बी .कॉम . फाइनल हो चुका था , उसने मुंबई एम. बी . ए . में प्रवेश ले लिया | कभी - कभी निखिल की फ्लाईट की उल्टी - सीधी टाइमिंग उसे बहुत परेशान करती थी ....खैर ..उसने स्वयं को पढ़ाई में व्यस्त रखा | एक साल बीत गया , कई बार प्रज्ञा ने निखिल से उसके जॉब के बारे में शिकायत की , निखिल उसकी इस शिकायत पर अपने मनमोहक स्टाइल से प्रज्ञा को मना लेता | एक साल बीत गया , प्रज्ञा इंटर्नशिप कर रही थी ...इन दिनों उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी ...थकान प्रतीत हो रही थी , खाना भी भली प्रकार नहीं खा पा रही | आज उसे एक - दो उल्टियां हुई हैं , 'ओह ! उस दिन आइसक्रीम अधिक खा ली थी ; ये उसी का नतीजा है', ऐसा सोचा प्रज्ञा ने ,.. .....पर निखिल उसे डॉ. को दिखाने ले गया ..वह प्रज्ञा का पीला पड़ा मुखमंडल देखकर चिंतित था ......हिल स्टेशन की लड़की , यहाँ मुंबई आकर कुम्हला सी गयी है ....कहीं जोंडिस ना हुआ हुआ हो !!
डॉ पारीख ने प्रज्ञा का चेक-अप किया , रिपोर्ट देखी ...' काँग्रेचुलेशंस ! मिसेज वल्दिया ; आप माँ बनने वाली हैं ' , | निखिल ये खबर सुन चहक उठा | प्रज्ञा ये खबर सुनने के लिए कदापि तैयार नहीं थी , उसे झटका सा लगा ..जरा भी खुशी नहीं हुई उसे ..' हम्म अपने पीरियड की डेट कैसे भूल गयी मैं ! .........कहाँ भूल हो गयी मुझसे ! ' सोच में डूब गयी प्रज्ञा , अभी तो मेरा एम. बी . ए . भी पूरा नहीं हुआ ..और मुझे कैरियर बनाना है पहले' , .....उसने घर आकर निखिल के सामने अपने विचार जाहिर कर दिए , ' निखिल ! मुझे अभी माँ नहीं बनना है ; मुझे अपना कैरियर बनाना है , बच्चे तो बाद में भी हो सकते हैं ', ....निखिल यह सुन सकते में आ गया ...' ये क्या कह रही हो तुम !! जब ये बच्चा आएगा ; तुम्हारा एम. बी . ए . पूरा हो चुका होगा .....कैरियर एक - दो साल में भी बना सकती हो ', ' नहीं !! मुझे अबोर्शन करवाना है ', नादान प्रज्ञा आँखों में आँसू भर दृढ़ स्वर में बोली ........., ' तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो प्रज्ञा ? जितना तुम्हारा इस बच्चे पर हक है उतना मेरा भी ; तुम नहीं कराओगी एबोर्शन !!! निखिल विवाह के पश्चात् पहली बार कठोर स्वर में बोला था प्रज्ञा से ...........| सारी रात प्रज्ञा सुबकती रही थी ............| प्रज्ञा की जिद के आगे आखिर निखिल को झुकना पड़ा , डॉ ने उन्हें बताया कि पहला अबोर्शन खतरनाक हो सकता है , फैलोपियन ट्यूब बंद होने से ; आगे माँ बनने में बाधा भा आ सकती है | प्रज्ञा ने डॉ . की बात दरकिनार रख अबोर्शन करवा लिया |
घर आकर प्रज्ञा ने संतोष की साँस ली है ..पर निखिल उदास था | आठ - नौ दिन की छुट्टियों और आराम के बाद प्रज्ञा ने वापस ज्वाइन कर लिया | इस बीच निखिल ने स्वयं प्रज्ञा का खास ध्यान रखा था और मेड से भी कह उसे समय - समय पर जूस , दवाइयों देने के लिए समझा दिया था | धीरे - धीरे प्रज्ञा स्वस्थ हो गयी | निखिल का स्वभाव इधर चिडचिडा सा हो गया है , वह प्रज्ञा की ओर से लापरवाह सा हो गया ..दोनों के बीच एक ठंडी अबोली रेखा खींची रहती है ......प्रज्ञा ने निखिल का कहना नहीं माना , शायद यह उसी का नतीजा था .....खैर प्रज्ञा अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी |
निखिल के सर्विस के शेड्यूल पहले ही अटपटे थे , प्रज्ञा अपने प्रति निखिल की रुखाई देख दुखी थी , .........कभी - कभी वह उससे शिकायत भी करती , निखिल उसे दो टूक उत्तर दे देता ' ये तुम्हें विवाह से पहले सोचना चाहिए था कि मेरी जॉब कैसी है ; मेरे टाइमिंग तुम्हारे अकोर्डिंग नहीं चल सकती ', .........' हम्म ; ये वही निखिल है जो पहले इस प्रकार की शिकायत करने पर उसे कितने लुभावने से प्रस्तावों से मना लेता था , एक पल में नाराजगी दूर हो जाती थी प्रज्ञा की, ...........'काश ! फिर से ऐसे ही मनाये उसे निखिल , मेरी एक बात की कितनी बड़ी सजा दे रहा है मुझे !! ', ....प्रज्ञा घुटकर रह जाती ...........|
प्रज्ञा का एम. बी . ए . पूरा हो चुका था ....और एक प्रतिष्ठित कंपनी में उसकी जॉब भी लग गयी है...दोनों का जीवन बस ,....चल रहा था | जॉब मिलते ही प्रज्ञा बहुत व्यस्त हो गयी थी , अब तो दोनों के पास एक दूसरे के लिए बिलकुल भी समय नहीं था जैसे ! मशीनी जिंदगी जी रहे थे दोनों , बस गनीमत थी कि प्रज्ञा की जॉब मुंबई में ही थी .....|
दोनों के बीच एक छोटी दरार, खाई का रूप लेते जा रही थी ....|निखिल के अत्यधिक व्यस्त रहने पर प्रज्ञा शक्की हो गयी थी , उसे लगता ;अवश्य निखिल का कही अफेयर चल रहा हैं | भावुक निखिल प्रज्ञा की अबोर्शन वाली बात से अभी तक आहत था , उसे समझ नहीं आ रहा आगे चलकर प्रज्ञा जब भी माँ बनेगी कैसी माँ साबित होगी और वो जाने - अनजाने प्रज्ञा के प्रति उदासीन होता चला गया | प्रज्ञा अपने पति की बेरुखी सहन ना करने से विद्रोही होती चली गयी , अब वह अपने मित्रों के ग्रुप की हर पार्टी अटेंड करती थी बिना निखिल के ही, ...अब निखिल और प्रज्ञा दोनों एक दूसरे को जलाने के कोई अवसर नहीं छोड़ते | नादान ! एक दूसरे से प्यार करते थे तभी तो दोनों के ह्रदय ने भले ही अपने -अपने दरवाजों को कसकर बंद करने का प्रयास किया हो ..... पर दोनों के मस्तिष्क में उथल - पुथल चलती रहती थी | प्रज्ञा विद्रोही होती गयी एक दिन उसने क्रोध में निखिल से कह ही दिया ' तुम्हारा जरुर कही अफेयर है ; इसलिए तो मुझे इग्नोर करते हो तुम !!........, पहले से ही चिडचिड़ा निखिल अपना आपा खो बैठा और उसने प्रज्ञा को तमाचे जड़ दिए , प्रज्ञा हतप्रभ रह गयी , उसने सोचा भी नहीं था एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ऐसी हरकत कर सकता है |.......स्वयं; प्रज्ञा ने जो चरित्रहीनता का आरोप लगाया था निखिल पर , ये क्या कम था !! ..........पर दोनों को अपनी कोई भी गलती नजर नहीं आ रही थी .......|
कुछ दिन बहुत टेंशन में बिताये प्रज्ञा ने , निखिल भी अपसेट था ,... उसे प्रज्ञा के प्रति अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी थी , ..पर उसका इगो उसे प्रज्ञा से क्षमा नहीं मांगने की इजाजत नहीं देता था .... | इधर प्रज्ञा अभी भी सोचती थी ' काश ! एक बार निखिल उससे क्षमा मांग ले | दोनों में से कोई नहीं झुका ...प्रज्ञा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक कठोर कदम उठाया ....बस ; सोच लिया उसने ; अब नहीं रहेगी वह निखिल के साथ ...बहुत हो चुका ..| प्रज्ञा के खास मित्रों ने उसे कितना समझाया , निखिल आश्चर्यचकित तो था पर मुड़ने को तैयार नहीं ..जबकि इस समय उसे अपनी अप्पू दी बहुत याद आई ,.......... जब अक्टूबर में वे दोनों प्रज्ञा और निखिल नैनीताल और रानीखेत गए थे तो प्रज्ञा के अबोर्शन वाली बात ; पति - पत्नी के बीच वाली बात है , सोचकर छुपा गया था वह अपनी अप्पू दी से ......|
दो दिन नैनीताल और दो दिन रानीखेत , बस पांच दिन ही छुट्टियाँ लेकर आये थे दोनों | नैनी ताल में प्रज्ञा के घर टूरिस्ट मेहमानों का जमावड़ा तथा रानीखेत में निखिल की बहनें और उनके बच्चों की धमाचौकडी में दोनों के परिवारों को पता ही नहीं चल पाया कि निखिल -प्रज्ञा के बीच कुछ ठीक नहीं नहीं चल रहा | आज निखिल ने प्रज्ञा की बात सुनकर अप्पू दी को फोन कर दिया था , यह सुन अप्पू दी दौडी - दौडी आ पहुंची दिल्ली से , उन्होंने प्रज्ञा की माँ को भी फोन कर दिया था ...शायद माँ प्रज्ञा को समझा पाए | नैनीताल से प्रज्ञा के माता - पिता भागकर चले आये थे पर निखिल और प्रज्ञा दोनों ने आरोप और प्रत्यारोप के बीच स्वयं को निर्दोष बताया , सबके बहुत समझाने पर , अंतत: दोनों लगभग मान गए थे |
बस दो - चार दिनों बाद ही प्रज्ञा को निखिल की फिर ना जाने कोई बात चुभने पर निखिल के तमाचे और अपने अपमान की छटपटाहट याद हो आई , अब उसे कोई नहीं रोक सकता इस घर में ,........वह वर्किंग -वीमेंस होस्टल चली आई , अबकी निखिल ने उसे नहीं रोका .....दोनों में प्यार से अधिक ' जिद ' हावी हो गयी थी |
यूँ ही दिन -महीने और साल बीतने लगे ......दोनों के परिवारों ने लाख कोशिशें कीं ...सब बेकार | कर्नल महरा ने बिस्तर पकड़ लिया था , उन्हें अब प्रज्ञा का ' मंगल ' अपनी आँखों के आँसुओं में साफ -साफ नजर आता | अप्पू दीदी, निखिल से खासी नाराज थीं , अपने लाडले भाई की गलती पर उसे क्षमा करने को तैयार नहीं | निखिल अपनी राह और प्रज्ञा अपनी राह ..............| दोनों परिवारों ने चाहा कि अगर दोनों दुबारा एक नहीं होना चाहते तो तलाक ले फिर से घर बसा लें , आखिर जिंदगी भर अकेले कैसे रहेंगे !! ............प्रज्ञा ने कह दिया कि एक विवाह कर अनुभव हो गया है उसे ..., कोई उससे तलाक और विवाह की बात ना करे | निखिल का मानना था कि वह भी यूँ ही बिता लेगा जिन्दगी !
अब प्रज्ञा बहुत समय से विदेश में थी , बीच में कई साल तक तो निखिल चुपके - २ प्रज्ञा की खबर लेता रहा ..पर बाद में सारे साथी इधर -उधर हो गए |
आज फेसबुक पर ' प्रज्ञा महरा ' को देखकर उसकी सारी यादें हरी हो आई हैं , 'तो मेमसाहब ने अपना फेसबुक नाम में 'सरनेम' मायके वाला लगाया है ...इसका मतलब प्रज्ञा ने अभी कोई दूसरा साथी नहीं ढूँडा है ' , ....... निखिल को अब लगता है सारी की सारी गलतियां निखिल की ही थी ..'काश ! मना ही लेता प्रज्ञा को ...' ,एक उदास मुस्कान के साथ निखिल ने अपनी प्यारी दीदी को फिर से फोन लगाया है ........... |
क्या प्रज्ञा- निखिल फिर मिलेंगे !!!
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अट्ठाईस साल का निखिल वल्दिया हिंदी फिल्म के हीरो जैसा आकर्षक था , क्लीन शेव्ड चेहरा , छरहरा लंबा युवक था , राइट साइड से पार्टिंग कर बाल बनाने का तरीका उसे अपने मित्रों भिन्न बनाता ,अभी दो साल पहले उसने कमर्शियल पायलेट का कोर्स खत्म किया था और एक अच्छी कंपनी में वह कमर्शियल पायलेट था | जब भी वह उस कंपनी की पायलेट की ड्रेस पहनता तो कितना जँचता था !!
पिता रिटायर्ड एजुकेशन डायरेक्टर थे , रानीखेत में सैटल हो गए थे | रानीखेत में कालिका के पास शानदार बंगला था |
तीन बहनों के बाद निखिल बहनों का लाडला भाई ;....खासकर' मंझली दी' का मुँहलगा भाई था , मंझली दी से वह सब बातें शेयर करता ; बिलकुल दोस्तों की भांति ,सभी बहने अपनी - अपनी गृहस्थी में खुश थीं |
| माँ की तीव्र इच्छा थी कि अब निखिल का विवाह हो जाए |
'' इतनी जल्दी मत मचाओ माँ ; जब भी कोई कुमाऊंनी सुन्दर कन्या देखती हो; बस आपको उसमें अपनी बहू नजर आने लगती है; ...जिस लड़की से मेरी शादी होगी वह सुन्दर ही नहीं इंटेलीजेंट भी होनी चाहिए " , जोर की हँसी हँसते हुए उसने अपनी माँ से कहा | माँ को अपनी मर्जी बता दी थी उसने, ....' हाँ - हाँ तू फिकर मत कर ; ऐसी ही कन्या से करुँगी तेरी शादी, ...अप्पू से भी बोल दिया है मैंने ', माँ एक स्नेह भरी मुस्कान निखिल पर डालकर कहा |
अप्पू दीदी [ मंझली दी ] की ससुराल रैमजे अस्पताल के पास था | पर अभी वे दिल्ली रहती थी
| उनके पति वहीं थे | बड़ी और छोटी दीदी को निखिल के विवाह का इन्तजार तो था पर कन्या में ढूँढने में कोई दिलचस्पी नहीं थी ' नक्शेबाज लड़का ! पता नहीं हमारी ढूंडी लड़की पसंद भी करेगा कि नहीं....इसके लिए लड़की भी ऐसी ही नखरीली होनी चाहिए ',....दोनों बहनें आपस में बातें करती |
निखिल को स्वयं ही ढूंड लेनी चाहिए लड़की .... | निखिल को कुछ समझ में नहीं आता कई बार उसे आभास हुआ उसकी सह- पायलेट नीला ने कई बार निखिल के प्रति अपने आकर्षण को निखिल के आगे जाहिर किया पर ये शायद केवल आकर्षण है ; प्यार -व्यार जैसा कुछ भी नहीं , वैसे भी ...निखिल ने इससे आगे कुछ सोचा ही नहीं |
अप्पू दी ने आखिर अपने लाडले भाई के लिए उसकी पसंद की लड़की तलाश ली |
कभी कहा था उसने निखिल से, ' तेरे लिए चाँद का टुकड़ा जैसी लड़की देखूंगी रे ! ', उसे यकीन था निखिल को प्रज्ञा अवश्य पसंद आयेगी |
कर्नल प्रताप सिंह महरा , आर्मी से रिटायर्ड हो नैनीताल में बस गए थे ,उनका मन तो था देहरादून में बसंत -विहार में बसने का ; जहां अधिकतर फौजी ऑफीसर बसे थे पर प्रज्ञा को नैनीताल पसंद था ..फिर उसे ग्रेजुअशन के लिए एडमिशन भी तो लेना था, प्रज्ञा को नैनीताल जान से प्यारा था | प्रज्ञा का फाइनल ईयर था | ब्रुकहिल पर महरा साहब का छोटा मगर कलात्मक बंगला था , जिरेनियम , गुलाब और पिटुनियां और ग्रीन प्लांट से सजा हुआ ....छोटा लाँन , छोटा बरांडा , छतों के बार्डर पर लगे तराशे गए कंगूरे ...जब भी इनसे बर्फ पिघलती तो कंगूरे शीशे का आभास देते थे |कर्नल थे तो खुर्राट व्यक्तित्व वाले पर उनका ह्रदय मोम जैसा था , ......झील से उठते कोहरे , तेज भागते बादल , अचानक से आई बारिश , कोयल की कूंक , बर्फ के कंगूरे उन्हें बहुत लुभाते | यूँ कर्नल चाहते थे उनका दामाद भी एयरफोर्स या आर्मी से हो पर उनकी पत्नी ममता ने बिलकुल मना कर दिया, ...शुरू में तो कितना दूर रहना पड़ता है परिवार से फौज वालों को ...'पीस' में हो तभी फॅमिली ले जा सकते हैं | ' नहीं जी , कोई सिविलियन से करेंगे प्रज्ञा का विवाह ' , .......मिसेज महरा ने अपने पति से आग्रह किया था |
प्रज्ञा लंबी , दूध जैसे रंग वाली लड़की थी , उसकी बड़ी चंचल आँखे और गालों में पड़ने वाले गड्ढे उसे अधिक आकर्षक बनाते थे , उसके घुंघराले कंधे तक बाल यू शेप में कटे थे , बाल आगे आये या नहीं गर्दन झटककर बालों को पीछे ले जाना उसका स्टाइल ही बन गया था | अपने ग्रुप में वह सबकी चहेती थी |
नैनीताल की ऑक्सीजन ने उसे और भी आकर्षक बना दिया था | डैड की लाडली ' प्रज्ञा ', ...' माय लिटिल प्रिंसेस ' कहते थे उसे कर्नल साहब | प्रज्ञा उनकी इकलौती बेटी थी |
उस दिन प्रज्ञा को रु-ब- रु देखने का दिन चुना गया | दिल्ली से अप्पू और मुंबई से निखिल रानीखेत कल ही आ पहुंचे ...| अप्पू , उसके पति धीरेन्द्र , माँ , पापा और महाशय निखिल अपनी कार में सज -धजकर लद गए , कार नैनीताल की ओर रवाना हो गई | निखिल अभी जींस और टी -शर्ट में था , अप्पू दी के ससुराल पहुंचकर ये फैशनेबल लड़का फिर से तैयार होगा ...उसने सोच लिया था : ऑलिव - ग्रीन ट्राउजर और पिस्ता कलर की फुल शर्ट पहनेगा वह , आखिर आर्मी वालों के यहाँ जा रहा है ड्रेस कोड का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा उसे जबकि उसका मन था श्वेत टी - शर्ट और बस डेनिम जींस डाले ...कैजुअल उसे अधिक पसंद था | पर अप्पू दी के आगे उसकी एक ना चली | असल में दीदी को यह परिवार और प्रज्ञा इतनी पसंद आई कि वह नहीं चाहती उसके लाडले भाई को किसी भी छोटी - मोटी वजह से नापसंद किया जाए |
कर्नल साहब के यहाँ अफरा -तफरी मची थी , किचन और डाईनिंग रूम मे खास हलचल थी | महंगी क्राकरी से सजा था टेबल , कॉर्नर के टेबल पर इकेबाना से फ्लावर पॉट सजा था , ऑफ वाईट रंग की दीवारों वाला डाईनिंग रूम में शोख रानी रंग के परदे लगे थे ....अधिकतर शीतल रहने वाला नैनीताल में चटख रंग घरों को वार्म लुक देते हैं ...| ड्राइंग रूम लेमन रंग का था , यहाँ नन्हें -नन्हें मरून और पीले फूलों वाले परदे और पीली झालरें थीं पर्दों पर , बीच में शीशे की टेबल थी जिसका आधार चायपत्ती के पेड़ की झाड़ी से बना था , इसे कर्नल अपनी असम पोस्टिंग की निशानी कहते थे | क्रीम रंग के सोफे और गहरे मरूंन की कार्पेट थी पर उसकी आभा लाल आभास दे रही थी |
प्रज्ञा चाहती थी कि वो या तो चूडीदार और लंबा कुर्ता पहने या सिंपल जींस और सिल्क का बाटिक प्रिंट वाला छोटा गुलाबी कुर्ता , ..... पर फौजी डैड ! उनका आदेश था कि प्रज्ञा एकदम भारतीय लिबास पहने ...अतः प्रज्ञा ने अपने कजन के विवाह; जो नवम्बर में हुआ था , वही साड़ी निकाली ; कांजीवरम की प्लेन ग्रे साड़ी जिस पर ग्रीन , गोल्डन और रेड का बार्डर था | गोल्डन स्लीवलैस ब्लाउज के साथ खूब फब रही थी ; ग्रे साड़ी ...| अंत समय तक वह साड़ी पहन ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रही, ' ओह ! कधे में अच्छे से पिन लगा लूँ ये साड़ी वर्ना संभल नहीं पाएगी मुझसे ' , |
नियत समय पर लड़के वाले आ गए , प्रज्ञा ने गर्दन ऊँची रख , धीरे -२ मुस्कुराते हुए ड्राइंगरूम मे प्रवेश किया , निखिल तो उसे एकटक देखता रह गया !! ..........अपने दाहिनी ओर बैठी दीदी के कान के पास मुँह ले जाकर बोला ; अप्पू दी ! आपकी च्वाइस पर मुझे पूरा यकीन था ' .........फिर क्या था ये नखरे वाला लड़का, कम थोड़े ना था , प्रज्ञा को ये हीरो पसंद आना ही था | झटपट प्रज्ञा और निखिल ने एक दूसरे को पसंद कर लिया |
अभी पूरी तरह हाँ नहीं हुई थी , दोनों परिवार भ्रम में थे ; प्रज्ञा मांगलिक थी , कर्नल साहब थोड़ा सोच में थे पर डायरेक्टर वल्दिया इन सबमें इतना विश्वास नहीं करते थे , आखिर पंडित जी से इसका तोड़ पूछकर विवाह कर दिया गया | छोटा सा हरियाला रानीखेत, कुछ दिन निखिल - प्रज्ञा और मेहमानों से गुलजार रहा ....., फिर सब वापस अपने - अपने घर | निखिल और प्रज्ञा भी मुंबई आ गए , प्रज्ञा यहाँ केवल दो हफ्ते के लिए थी उसे वापस फाइनल परीक्षाओं के लिए नैनीताल जाना था | चार - पाँच दिन तो यूँ ही बीत गए अब निखिल को जॉब पर जाना था , टाइम -बे- टाइम की फ्लाईट , हालाँकि निखिल की पूरी कोशिश थी कि कुछ दिन उसे अपने मनपसंद शेड्यूल मिले | दो हफ्ते कैसे बीत गए ...लव - बर्ड्स को पता ही नहीं चला ..... |
प्रज्ञा वापस नैनीताल आ गयी थी |
दो महीने गुजर गए प्रज्ञा का बी .कॉम . फाइनल हो चुका था , उसने मुंबई एम. बी . ए . में प्रवेश ले लिया | कभी - कभी निखिल की फ्लाईट की उल्टी - सीधी टाइमिंग उसे बहुत परेशान करती थी ....खैर ..उसने स्वयं को पढ़ाई में व्यस्त रखा | एक साल बीत गया , कई बार प्रज्ञा ने निखिल से उसके जॉब के बारे में शिकायत की , निखिल उसकी इस शिकायत पर अपने मनमोहक स्टाइल से प्रज्ञा को मना लेता | एक साल बीत गया , प्रज्ञा इंटर्नशिप कर रही थी ...इन दिनों उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी ...थकान प्रतीत हो रही थी , खाना भी भली प्रकार नहीं खा पा रही | आज उसे एक - दो उल्टियां हुई हैं , 'ओह ! उस दिन आइसक्रीम अधिक खा ली थी ; ये उसी का नतीजा है', ऐसा सोचा प्रज्ञा ने ,.. .....पर निखिल उसे डॉ. को दिखाने ले गया ..वह प्रज्ञा का पीला पड़ा मुखमंडल देखकर चिंतित था ......हिल स्टेशन की लड़की , यहाँ मुंबई आकर कुम्हला सी गयी है ....कहीं जोंडिस ना हुआ हुआ हो !!
डॉ पारीख ने प्रज्ञा का चेक-अप किया , रिपोर्ट देखी ...' काँग्रेचुलेशंस ! मिसेज वल्दिया ; आप माँ बनने वाली हैं ' , | निखिल ये खबर सुन चहक उठा | प्रज्ञा ये खबर सुनने के लिए कदापि तैयार नहीं थी , उसे झटका सा लगा ..जरा भी खुशी नहीं हुई उसे ..' हम्म अपने पीरियड की डेट कैसे भूल गयी मैं ! .........कहाँ भूल हो गयी मुझसे ! ' सोच में डूब गयी प्रज्ञा , अभी तो मेरा एम. बी . ए . भी पूरा नहीं हुआ ..और मुझे कैरियर बनाना है पहले' , .....उसने घर आकर निखिल के सामने अपने विचार जाहिर कर दिए , ' निखिल ! मुझे अभी माँ नहीं बनना है ; मुझे अपना कैरियर बनाना है , बच्चे तो बाद में भी हो सकते हैं ', ....निखिल यह सुन सकते में आ गया ...' ये क्या कह रही हो तुम !! जब ये बच्चा आएगा ; तुम्हारा एम. बी . ए . पूरा हो चुका होगा .....कैरियर एक - दो साल में भी बना सकती हो ', ' नहीं !! मुझे अबोर्शन करवाना है ', नादान प्रज्ञा आँखों में आँसू भर दृढ़ स्वर में बोली ........., ' तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो प्रज्ञा ? जितना तुम्हारा इस बच्चे पर हक है उतना मेरा भी ; तुम नहीं कराओगी एबोर्शन !!! निखिल विवाह के पश्चात् पहली बार कठोर स्वर में बोला था प्रज्ञा से ...........| सारी रात प्रज्ञा सुबकती रही थी ............| प्रज्ञा की जिद के आगे आखिर निखिल को झुकना पड़ा , डॉ ने उन्हें बताया कि पहला अबोर्शन खतरनाक हो सकता है , फैलोपियन ट्यूब बंद होने से ; आगे माँ बनने में बाधा भा आ सकती है | प्रज्ञा ने डॉ . की बात दरकिनार रख अबोर्शन करवा लिया |
घर आकर प्रज्ञा ने संतोष की साँस ली है ..पर निखिल उदास था | आठ - नौ दिन की छुट्टियों और आराम के बाद प्रज्ञा ने वापस ज्वाइन कर लिया | इस बीच निखिल ने स्वयं प्रज्ञा का खास ध्यान रखा था और मेड से भी कह उसे समय - समय पर जूस , दवाइयों देने के लिए समझा दिया था | धीरे - धीरे प्रज्ञा स्वस्थ हो गयी | निखिल का स्वभाव इधर चिडचिडा सा हो गया है , वह प्रज्ञा की ओर से लापरवाह सा हो गया ..दोनों के बीच एक ठंडी अबोली रेखा खींची रहती है ......प्रज्ञा ने निखिल का कहना नहीं माना , शायद यह उसी का नतीजा था .....खैर प्रज्ञा अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी |
निखिल के सर्विस के शेड्यूल पहले ही अटपटे थे , प्रज्ञा अपने प्रति निखिल की रुखाई देख दुखी थी , .........कभी - कभी वह उससे शिकायत भी करती , निखिल उसे दो टूक उत्तर दे देता ' ये तुम्हें विवाह से पहले सोचना चाहिए था कि मेरी जॉब कैसी है ; मेरे टाइमिंग तुम्हारे अकोर्डिंग नहीं चल सकती ', .........' हम्म ; ये वही निखिल है जो पहले इस प्रकार की शिकायत करने पर उसे कितने लुभावने से प्रस्तावों से मना लेता था , एक पल में नाराजगी दूर हो जाती थी प्रज्ञा की, ...........'काश ! फिर से ऐसे ही मनाये उसे निखिल , मेरी एक बात की कितनी बड़ी सजा दे रहा है मुझे !! ', ....प्रज्ञा घुटकर रह जाती ...........|
प्रज्ञा का एम. बी . ए . पूरा हो चुका था ....और एक प्रतिष्ठित कंपनी में उसकी जॉब भी लग गयी है...दोनों का जीवन बस ,....चल रहा था | जॉब मिलते ही प्रज्ञा बहुत व्यस्त हो गयी थी , अब तो दोनों के पास एक दूसरे के लिए बिलकुल भी समय नहीं था जैसे ! मशीनी जिंदगी जी रहे थे दोनों , बस गनीमत थी कि प्रज्ञा की जॉब मुंबई में ही थी .....|
दोनों के बीच एक छोटी दरार, खाई का रूप लेते जा रही थी ....|निखिल के अत्यधिक व्यस्त रहने पर प्रज्ञा शक्की हो गयी थी , उसे लगता ;अवश्य निखिल का कही अफेयर चल रहा हैं | भावुक निखिल प्रज्ञा की अबोर्शन वाली बात से अभी तक आहत था , उसे समझ नहीं आ रहा आगे चलकर प्रज्ञा जब भी माँ बनेगी कैसी माँ साबित होगी और वो जाने - अनजाने प्रज्ञा के प्रति उदासीन होता चला गया | प्रज्ञा अपने पति की बेरुखी सहन ना करने से विद्रोही होती चली गयी , अब वह अपने मित्रों के ग्रुप की हर पार्टी अटेंड करती थी बिना निखिल के ही, ...अब निखिल और प्रज्ञा दोनों एक दूसरे को जलाने के कोई अवसर नहीं छोड़ते | नादान ! एक दूसरे से प्यार करते थे तभी तो दोनों के ह्रदय ने भले ही अपने -अपने दरवाजों को कसकर बंद करने का प्रयास किया हो ..... पर दोनों के मस्तिष्क में उथल - पुथल चलती रहती थी | प्रज्ञा विद्रोही होती गयी एक दिन उसने क्रोध में निखिल से कह ही दिया ' तुम्हारा जरुर कही अफेयर है ; इसलिए तो मुझे इग्नोर करते हो तुम !!........, पहले से ही चिडचिड़ा निखिल अपना आपा खो बैठा और उसने प्रज्ञा को तमाचे जड़ दिए , प्रज्ञा हतप्रभ रह गयी , उसने सोचा भी नहीं था एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ऐसी हरकत कर सकता है |.......स्वयं; प्रज्ञा ने जो चरित्रहीनता का आरोप लगाया था निखिल पर , ये क्या कम था !! ..........पर दोनों को अपनी कोई भी गलती नजर नहीं आ रही थी .......|
कुछ दिन बहुत टेंशन में बिताये प्रज्ञा ने , निखिल भी अपसेट था ,... उसे प्रज्ञा के प्रति अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी थी , ..पर उसका इगो उसे प्रज्ञा से क्षमा नहीं मांगने की इजाजत नहीं देता था .... | इधर प्रज्ञा अभी भी सोचती थी ' काश ! एक बार निखिल उससे क्षमा मांग ले | दोनों में से कोई नहीं झुका ...प्रज्ञा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक कठोर कदम उठाया ....बस ; सोच लिया उसने ; अब नहीं रहेगी वह निखिल के साथ ...बहुत हो चुका ..| प्रज्ञा के खास मित्रों ने उसे कितना समझाया , निखिल आश्चर्यचकित तो था पर मुड़ने को तैयार नहीं ..जबकि इस समय उसे अपनी अप्पू दी बहुत याद आई ,.......... जब अक्टूबर में वे दोनों प्रज्ञा और निखिल नैनीताल और रानीखेत गए थे तो प्रज्ञा के अबोर्शन वाली बात ; पति - पत्नी के बीच वाली बात है , सोचकर छुपा गया था वह अपनी अप्पू दी से ......|
दो दिन नैनीताल और दो दिन रानीखेत , बस पांच दिन ही छुट्टियाँ लेकर आये थे दोनों | नैनी ताल में प्रज्ञा के घर टूरिस्ट मेहमानों का जमावड़ा तथा रानीखेत में निखिल की बहनें और उनके बच्चों की धमाचौकडी में दोनों के परिवारों को पता ही नहीं चल पाया कि निखिल -प्रज्ञा के बीच कुछ ठीक नहीं नहीं चल रहा | आज निखिल ने प्रज्ञा की बात सुनकर अप्पू दी को फोन कर दिया था , यह सुन अप्पू दी दौडी - दौडी आ पहुंची दिल्ली से , उन्होंने प्रज्ञा की माँ को भी फोन कर दिया था ...शायद माँ प्रज्ञा को समझा पाए | नैनीताल से प्रज्ञा के माता - पिता भागकर चले आये थे पर निखिल और प्रज्ञा दोनों ने आरोप और प्रत्यारोप के बीच स्वयं को निर्दोष बताया , सबके बहुत समझाने पर , अंतत: दोनों लगभग मान गए थे |
बस दो - चार दिनों बाद ही प्रज्ञा को निखिल की फिर ना जाने कोई बात चुभने पर निखिल के तमाचे और अपने अपमान की छटपटाहट याद हो आई , अब उसे कोई नहीं रोक सकता इस घर में ,........वह वर्किंग -वीमेंस होस्टल चली आई , अबकी निखिल ने उसे नहीं रोका .....दोनों में प्यार से अधिक ' जिद ' हावी हो गयी थी |
यूँ ही दिन -महीने और साल बीतने लगे ......दोनों के परिवारों ने लाख कोशिशें कीं ...सब बेकार | कर्नल महरा ने बिस्तर पकड़ लिया था , उन्हें अब प्रज्ञा का ' मंगल ' अपनी आँखों के आँसुओं में साफ -साफ नजर आता | अप्पू दीदी, निखिल से खासी नाराज थीं , अपने लाडले भाई की गलती पर उसे क्षमा करने को तैयार नहीं | निखिल अपनी राह और प्रज्ञा अपनी राह ..............| दोनों परिवारों ने चाहा कि अगर दोनों दुबारा एक नहीं होना चाहते तो तलाक ले फिर से घर बसा लें , आखिर जिंदगी भर अकेले कैसे रहेंगे !! ............प्रज्ञा ने कह दिया कि एक विवाह कर अनुभव हो गया है उसे ..., कोई उससे तलाक और विवाह की बात ना करे | निखिल का मानना था कि वह भी यूँ ही बिता लेगा जिन्दगी !
अब प्रज्ञा बहुत समय से विदेश में थी , बीच में कई साल तक तो निखिल चुपके - २ प्रज्ञा की खबर लेता रहा ..पर बाद में सारे साथी इधर -उधर हो गए |
आज फेसबुक पर ' प्रज्ञा महरा ' को देखकर उसकी सारी यादें हरी हो आई हैं , 'तो मेमसाहब ने अपना फेसबुक नाम में 'सरनेम' मायके वाला लगाया है ...इसका मतलब प्रज्ञा ने अभी कोई दूसरा साथी नहीं ढूँडा है ' , ....... निखिल को अब लगता है सारी की सारी गलतियां निखिल की ही थी ..'काश ! मना ही लेता प्रज्ञा को ...' ,एक उदास मुस्कान के साथ निखिल ने अपनी प्यारी दीदी को फिर से फोन लगाया है ........... |
क्या प्रज्ञा- निखिल फिर मिलेंगे !!!
nice one
ReplyDeleteधन्यवाद, जीत जी .........
Deletebahut achhi kahani
ReplyDeleteThanks ,Upasana :))
DeleteAaj kal ki kahani ........... koi kisi ko samjhne ko ready nhi ........ ek umda kahani padi kafi arse baad ..........
ReplyDeleteThanks Neelima ........
Deleteरोचक कहानी है. अपने 'करियर' के प्रति बेहद सचेत प्रज्ञा का निखिल से सम्बन्ध जटिलता लिए है, जबकि निखिल काफी हद तक सहज है उसके साथ. दोनों के रिश्ते में बिगाड़ के लिए 'मंगल' का कोई रोल नहीं है. प्रज्ञा का असंवेदनशील बर्ताव ही इस अमंगल का कारण है. कथानक प्रभावित करता है.
ReplyDeleteधन्यवाद ! अश्विनी जी .....
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