Sunday 5 February 2012

मेरा शहर - इन दिनों

शहर मेरा उधड़ा - उधड़ा  सा है
लगता है जैसे डाइनासोर आकर कर गए हों उत्पात
या फिर  मचाई हो तबाही  टर्मिनेटर के  विलेन ने
कई लैम्प - पोस्ट आड़े-तिरछे पड़े आखिरी साँस ले रहे जैसे
बिखरी ईटें कातर पड़ी है जैसे कह रही हों
करीने से बिछाओ मुझे
सीवर के होल के ढक्कन  मल्टीपल फ्रेक्चर  से त्रस्त हैं
गिट्टियां फुटपाथ की कहती हैं
जरा धीरे पैर रखना हमपर  ....मोच आ सकती है तुम्हें
डिवाइडर जो कुछ महीने पहले चमचमाती
पोशाकों से लैस थे
मुँह छुपा  कराह रहे हैं
सिविल लाइन्स मे भूले से महिलायें
कार ले जाती है तो बस फिर
दम साधे कार मे ही ऊंट और घोड़े की सवारी
का आनन्द लेती हैं
सड़कें चीख - चीखकर शहर वालों को
अपने काया को जल्दी ठीक होने के लिए
 की गई दुहाई मे शामिल होने को कह रही हैं
वृक्ष नहाने को आतुर हैं ..अब बस
बहुत हो गया मिट्टी का  उबटन और पाउडर
फुटपाथ किनारे के सब्जी व फल वालों की रोजी मंदी है
टायर कराहते हुए  वाहनों के  शहर से गुजरते हैं
बाइक सवार भूल गए हैं फर्राटे भरना
क्रोधित सड़के उतार चुकी हैं कई बार उन पर गुस्सा
बस प्रसन्न हैं तो विशाल मॉल
विनायक मॉल और बिग - बाजार के पार्किंग  तल
सुरसा की भांति मुँह फाड़े  फुटपाथों पर अब कोई
वाहन पार्क करने का रिस्क नहीं उठाता
  अति  आनंदित हैं तो ठेकेदार...
 मुझे  चिंता  है  इस वक्त आने वाले पर्यटकों की
जो मेरे शहर की छवि को लेते जायेंगे हमेशा के लिए
क्यों कि ऐसा तो न था  मेरा शहर!!

2 comments:

  1. बिखरी ईटें कातर पड़ी है जैसे कह रही हों
    करीने से बिछाओ मुझे

    bahut badhiya ji..

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