क्या लिखूं , कैसे लिखूं
अपने शहर के फेफड़े के बारे में
जिनमें हैं अनेक शाखाएं ....
लिखूं इन लघु -दीर्घ ,
पत्तियों के बारे में, जो अभी भी झर रही हैं
लहराते हुए झरने की भांति
या कब्र की देखभाल करते उस व्यक्ति के बारे में ,
जिसे आज पहली बार देखा है ;
गिलहरियों और चिड़ियों को ' पारले G ' खिलाते हुए
या खर - खर की झाड़ू की आवाज के साथ ,
सड़क स्वच्छ करते उस व्यक्ति के बारे में
जो निर्विकार भाव से अपने कार्य में खोया है .....
या फिर उन तीन गिलहरियों के बारे में जो ,
धमाचौकड़ी मचा रही हैं ;
वृक्षों से सड़क और सड़क से वृक्षों तक ......
या उन मालियों के बारे में ,
जिन्होंने कुदरत के साथ मिलकर
सजा दिए हैं बेल-बूटे हरे गलीचों में....
या फिर उस गाढ़े धुंवे की कहानी कहूँ ,
जो सूखी पत्तियों के जलने के बाद
प्रतीत होता है अनंत को जाते हुए
या सिल्वर और नारंगी रंग से रंगी तोपों के बारे में कहूँ ,
जो आजकल बच्चों का घोड़ा बनी हैं
या भव्य पब्लिक लायब्रेरी के ऊपर
पूरी बिरादरी के साथ जुटे कौवों की
काँव - काँव लिखू ,
जो आस-पास ही सजे किसी
महाभोज के लिए जुटे हैं
असमंजस में हूँ .........
पर सोचती हूँ
न ही लिखूँ कुछ
इन फूलों की कहानी -
इनकी ही जुबानी
बेहतर रहेगी
कुछ पलों का सुकून तो देगी ,
तनाव भरी जिंदगी से ............
अपने शहर के फेफड़े के बारे में
जिनमें हैं अनेक शाखाएं ....
लिखूं इन लघु -दीर्घ ,
पत्तियों के बारे में, जो अभी भी झर रही हैं
लहराते हुए झरने की भांति
या कब्र की देखभाल करते उस व्यक्ति के बारे में ,
जिसे आज पहली बार देखा है ;
गिलहरियों और चिड़ियों को ' पारले G ' खिलाते हुए
या खर - खर की झाड़ू की आवाज के साथ ,
सड़क स्वच्छ करते उस व्यक्ति के बारे में
जो निर्विकार भाव से अपने कार्य में खोया है .....
या फिर उन तीन गिलहरियों के बारे में जो ,
धमाचौकड़ी मचा रही हैं ;
वृक्षों से सड़क और सड़क से वृक्षों तक ......
या उन मालियों के बारे में ,
जिन्होंने कुदरत के साथ मिलकर
सजा दिए हैं बेल-बूटे हरे गलीचों में....
या फिर उस गाढ़े धुंवे की कहानी कहूँ ,
जो सूखी पत्तियों के जलने के बाद
प्रतीत होता है अनंत को जाते हुए
या सिल्वर और नारंगी रंग से रंगी तोपों के बारे में कहूँ ,
जो आजकल बच्चों का घोड़ा बनी हैं
या भव्य पब्लिक लायब्रेरी के ऊपर
पूरी बिरादरी के साथ जुटे कौवों की
काँव - काँव लिखू ,
जो आस-पास ही सजे किसी
महाभोज के लिए जुटे हैं
असमंजस में हूँ .........
पर सोचती हूँ
न ही लिखूँ कुछ
इन फूलों की कहानी -
इनकी ही जुबानी
बेहतर रहेगी
कुछ पलों का सुकून तो देगी ,
तनाव भरी जिंदगी से ............
Nice Pratibha...:))
ReplyDeleteThanks Di :))
Deleteआखिर आपने लिख ही दिया..... बहुत ही प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteThanks Sushma ji...
Deletesunder...naman aapko...rachnaa ko bhee....
ReplyDeleteThanks , Manohar ji..
Deletehttp://alwidaa.blogspot.com/
ReplyDeleteधन्यवाद मित्रों ||
ReplyDeleteवाह...आज बहुत दिन बाद इधर आना हुआ.....आपकी यह कविता बेहद अच्छी लगी....थोड़ा अचंभित भी हुआ....लेकिन विश्वास था आप लिखती होंगी.....अक्सर आपकी छोटी-छोटी किस्स्गोई पढ़ने को मिलती थी....लेकिन कविता में भी आपका दखल बेहद उम्दा है....अब अक्सर इधर आया करूँगा....आप लिखा कीजिये.......
ReplyDeleteधन्यवाद :)) विक्रम ..........
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