Saturday 18 February 2012

खुशियाँ

 अनजान विचारक की
 व्याख्यान की टोकरी से
 स्थिति को भांपकर
 ईमानदारी ,नीयत और
 सकारात्मक चिंतन का
 डाला है  अचार ,बरनी में
मिला दिए हैं
भरोसे और मुस्कराहट के
 मसाले
एक सफेद कपड़े में
काढ़ने  हैं ठहाके
बस बंद कर  देना है
बरनी को उससे
अनोखा अचार
तैयार हो
एक  नयी सोच देगा
 मुश्किल पलों में
खुश रहने के लिए

7 comments:

  1. wahhhhhh ji badhiya aachar hai ye to...

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  2. विचारों का नया बिम्ब - घरेलू कार्यों-चीजों का - एक महिला कवयित्री की सफलता दर्शाता हैं... बहौत सुंदर मनोभावों को व्यक्त किया... शुभकामनाएं - पंकज त्रिवेदी

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  3. बहुत अच्छा ब्लॉग है, सजावट भी, और कवितायेँ भी......बधाई.....

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  4. धन्यवाद , मित्रों .....:)

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  5. बहुत सुंदर ........

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  6. धन्यवाद , मित्रों ....

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