Sunday 15 March 2015

स्वप्न


स्वप्न सा हो जीवन भले ही
हजारों सपने हैं एक स्वप्न में
स्मृतियों में बजता है अभी भी एक गीत
श्वेत रिबन में अभी भी उलझती हैं उगलियाँ
खट्टे - मीठे बगीचों सी स्मृति
समंदर बन लहराती है अभी भी
तलहटी में ह्रदय के अभी भी छुपे हैं
कई बिना अंकुर वाले बीज
एच. एम.टी. की एक अनुराग घड़ी
रुकी सुइयों के साथ पिता का दुलार
बन अभी भी रखी है
अलमारी के अन्त:स्थल में
हुलसता छोटा मन कभी -कभी
पहुँच जाता है स्कूल अभी भी
चुपचाप शरारतों में शामिल हो
भोली सूरत बना लौट आता है वापस
पुनर्जिवित हो उठता है निष्क्रिय तन
धावक बन जीवन की रिले रेस में
सूर्यघड़ी की गति के साथ
चन्द्रमा और नक्षत्रों में उलझा
अग्रसर है अपने निश्चित गंतव्य की ओर ...

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