Pratibha Bisht Adhikari wrote a new note: मैं.
नहीं
नहीं लिख सकती एक कटु अध्याय
जिसे मैंने जिया ना हो
नहीं लिख सकती
नहीं लिख सकती एक कटु अध्याय
जिसे मैंने जिया ना हो
नहीं लिख सकती
बलात्कार के संदर्भ में
ये किसी और के साथ हुआ है
मेरे साथ नहीं
उन एसिड फैंकने वालों से मुझे क्या लेना देना
मैं तो साबुत बची हूँ अभी तक
अपाहिजों से भी नहीं है मुझे सहानुभूति
जबकि मैं नहीं जानती
दूसरे ही पल क्या गुजरने वाला है यहाँ
उन निर्धनों से प्यार क्यों करूँ मैं भला
इस जिंदगी में बसर करने लायक सब कुछ है मेरे पास
फुटपाथों के कंगाल
छी मत ही करो उनकी बातें
मुझे कोई दुःख नहीं जानना है उनका
आत्महत्या करते किसानों के कर्ज की
मत सुनाओ कहानी मुझे
मैंने जमा कर लिए हैं असीमित भण्डार
राजनीति मुझे समझ नहीं आती
जबकि इसी देश की नागरिक हूँ मैं
आई टी कंपनियों से कुछ सरोकार नहीं है मुझे
जबकि कहीं ना कहीं इनसे जुडी हूँ मैं
अपने देश की भौगोलिक स्थिति से
रहती हूँ अनजान
मुझे कौन सा करना है शोध
कन्या भ्रूण हत्या
कौन नया विषय है ये
सदियों से होता आया है ये तो
चुप ही रहना बेहतर है इसके बारे में
समाज के उन अलग -थलग पड़े लोगों के बारे में
क्यों सोचूं मैं भला
सरकार लेगी उनकी जिम्मेदारी
अपने अंदर के ' मैं' को बचाए रहने की
कोशिशों में
अंतर्मन में हो रही उथल-पुथल को अनदेखा कर देती हूँ मैं .....
ये किसी और के साथ हुआ है
मेरे साथ नहीं
उन एसिड फैंकने वालों से मुझे क्या लेना देना
मैं तो साबुत बची हूँ अभी तक
अपाहिजों से भी नहीं है मुझे सहानुभूति
जबकि मैं नहीं जानती
दूसरे ही पल क्या गुजरने वाला है यहाँ
उन निर्धनों से प्यार क्यों करूँ मैं भला
इस जिंदगी में बसर करने लायक सब कुछ है मेरे पास
फुटपाथों के कंगाल
छी मत ही करो उनकी बातें
मुझे कोई दुःख नहीं जानना है उनका
आत्महत्या करते किसानों के कर्ज की
मत सुनाओ कहानी मुझे
मैंने जमा कर लिए हैं असीमित भण्डार
राजनीति मुझे समझ नहीं आती
जबकि इसी देश की नागरिक हूँ मैं
आई टी कंपनियों से कुछ सरोकार नहीं है मुझे
जबकि कहीं ना कहीं इनसे जुडी हूँ मैं
अपने देश की भौगोलिक स्थिति से
रहती हूँ अनजान
मुझे कौन सा करना है शोध
कन्या भ्रूण हत्या
कौन नया विषय है ये
सदियों से होता आया है ये तो
चुप ही रहना बेहतर है इसके बारे में
समाज के उन अलग -थलग पड़े लोगों के बारे में
क्यों सोचूं मैं भला
सरकार लेगी उनकी जिम्मेदारी
अपने अंदर के ' मैं' को बचाए रहने की
कोशिशों में
अंतर्मन में हो रही उथल-पुथल को अनदेखा कर देती हूँ मैं .....
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