Tuesday, 24 February 2015

दिगो ....

दिगो ! लाली
कब पैरुल पुलोवर,
कब पैरुल जैकेट ,
कब पैरुल कोट ,
काँ छू इतु ठंड याँ !!
दिगो ! लाली
कब खूल मी गहते दाव,
कब पीयूल काली मर्चक चाहा ,
कब खूल सोंठ्क लाडू ,
काँ छू इतु ठण्ड याँ !!
दिगो ! लाली
कब बणूल स्नो मैन,
कब तापुल बांजे क्वेल ,
कब नापुल ठंडी रोड ,
काँ छू इतु ठण्ड याँ !!
दिगो ! लाली
कब निकालुल बक्सक तल्लि बटी थुल्म ,
कब बिछुल कश्मीरी नमद ,
कब ओढ़ूल ब्याक मोटी रजे ,
काँ छू इतु ठण्ड याँ !!

नोट -
गहते दाव = गहत की दाल , जिसकी तासीर गर्म मानी जाती है
बांजे क्वेल = बाँज /ओक ट्री के कोयले जो ' कोयलों में बेहतरीन ' माने जाते हैं
तल्लि = नीचे
बक्सक = बक्सा / बॉक्स
थुलमा /थुल्म = मुलायम रोंये वाला /प्योर सफ़ेद उन से बना कम्बल
कश्मीरी नमद = कश्मीरी कढ़ाई वाला मुलायम रुई सा गलीचा
ब्याक मोटी रजे = जो शादी में मिली थी 'शनील की वो मोटी रजाई '

I hope कि 'दिगो लाली ' शब्द मैंने उपयुक्त स्थान पर प्रयोग किया है |

No comments:

Post a Comment