Monday 23 February 2015

' बुना हुआ स्नेह '

' माँ ' अभी भी बुनती है प्यार
हो जाती हैं उत्साहित
किसी के माँ बनने की खबर से
कितना समझाया उनको
' पता है ! अब कोई वैल्यू नहीं है इन सबकी
असल में अब कोई नहीं जानता
स्नेहसिक्त फंदों का मोल
आँखों में जोर पड़ेगा
वो तुम्हारे दायें हाथ की कलाई का दर्द ,
डॉ . ऑपरेशन की सलाह देते हैं जिसकी
और
तुम हो कि मानती नहीं !! '
अपनी बेटियों से पड़ी कई झिडकियों का
होता नहीं उनको कुछ भी असर
एक -एक फंदे को अपनी
पुराने चश्में के मोटे शीशे के इस पार से देख
' बेबी सूट ' पर उकेर देती हैं
कई कल्पनाएँ
पहले बेटे- बेटी के लिए ,
उनके बच्चों के लिए
अब फिर नाती - पोते के बच्चों के लिए भी ...
माँ ! तुम कहाँ से लाती हो इतनी उर्जा
सब कहते हैं जहाँ -जहाँ तुम रही
वहाँ सब नए बच्चों को मिला
तुम्हारा सिला हुआ प्यार ,
ऊन की डोरियों में बुना तुम्हारा स्नेह
तुम्हारे भाव कितने निस्स्वार्थ हैं माँ .....

 

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