Monday, 8 December 2014

एक दोस्त नज्म जैसा

अरसों बाद
एक पुराने ..बहुत पुराने
दोस्त से मिलकर ; लगा कुछ ऐसे
सालों से ..साँसों में अटकी
कोई भूली-बिसरी नज्म
जुबाँ पर आ गयी हो जैसे
- श्री भारत लोहनी
.......................
फिर ...ना जाने क्यों
सुनाई ना सकी वो नज्म
गाई भी ना गयी
हर्फ़ गले से निकल
आँखों के आगे छा गए
कुछ गडमड्ड
जैसे
अश्क में तैर रही हो नज्म
फिर से
सुदूर कहीं गुम होने के लिए ....
-- प्रतिभा

Sunday, 30 November 2014

आशा -तृष्णा

उम्मीदों के झोले में बैठी
आस
प्रकाश छिद्रों से
झाँकती है बाहर
मुहाने बंद हैं
चारों दिशाओं में
भटकती है
मृग तृष्णा सी
खामोश है समंदर
फिर ये
कौन सा ज्वार है
कभी रिक्तता
कर लेती है घर
और
कभी कुलाँचें
मार आती है भावुकता
मन की दीवारों पर
लिखी जा रही है
अभिव्यक्ति की
अबूझ रचनायें
मौन
की परिभाभाषा के बीच
ये कौन से लेखनी है
जिसकी अमिट स्याही
जोड़े हुए है हमें
एक - दूसरे से ......

 

Monday, 24 November 2014

सिगरेट

अखिल बालकनी पर चहलकदमी कर रहा है ....बालकनी पर उसके साथ इस समय उसकी साथी बनती है ' सिगरेट ' , सिगरेट के तेज और लंबे कश लेकर वह कभी अपनी सोसाइटी के पार्क पर नजर डालता है तो कभी अपने उँगलियों में फंसी इस सिगरेट पर , ...बेटी की नजर से बचकर वह चुपचाप इधर आ जाता है...कितनी कोशिश की है उसने सिगरेट छोड़ने की ..पर छूटती ही नहीं ....
' डैड ! ६ बज गए हैं ..चाय रखी है ..ठंडी हो जायेगी ..पी लीजिए !' , बेटी ने चाय की ट्रे टेबल पर रखकर डैड को आवाज दी |
अखिल जल्दी से सिगरेट ऐश-ट्रे में कुचलता है ..मुस्कराते हुए अंदर आ बेटी पर एक प्यारभरी नजर डालते हुए सोचता है ' कितना खयाल रखती है किट्टू उसका ...पढते-पढते बिलकुल नहीं भूलती कि डैड को ठीक टाइम पर चाय चाहिए , ये वही किट्टू है नाइंथ में पढ़ने वाली ; जिसे वह प्रतिदिन सुबह मलाई छानकर ' दूध ' देने पर भी किट्टू से सुनता है - ' डैड इसमें फिर से मलाई है ', ' चल पी ले चुपचाप बहाने मत कर ', कह बेटी के हाथ में गिलास थमा देता है |
अखिल को डर है किसी दिन बेटी उसका सिगरेट केस अधिकारपूर्वक उठाकर डस्टबिन में डाल देगी ये कहते हुए कि ' हमारे फेफड़े ऑक्सीजन सोखने के लिए बने हैं ; धुवाँ सोखने के लिए नहीं ! ', तब क्या सचमुच छोड़ पायेगा वो सिगरेट !
क्योंकि बेटियों को अपने पिता की माँ बनते देर नहीं लगती ...पिता की देखभाल वो बिलकुल ' माँ ' की भाँति करती है .........|

'नवरात्र '

चटाक ! ' रुको माही .. गेहूँ छू ली तुम !! '
दादी ने भवें चढा बुरा सा मुँह बना , कर्कश आवाज में माही को फटकारते हुए एक करारा चाँटा रसीद किया |
परात पर सूखते ये गेहूँ ' नौ कुँवारी नन्हीं कन्याओं के भोजन ' के लिए थे|

Tuesday, 9 September 2014

बस यूँ भी ...

उम्मीदों के झोले में बैठी
आस
प्रकाश छिद्रों से
झाँकती है बाहर
मुहाने बंद हैं
चारों दिशाओं में
भटकती है
मृग तृष्णा सी
खामोश है समंदर
फिर ये
कौन सा ज्वार है
कभी रिक्तता
कर लेती है घर
और
कभी कुलाँचें
मार आती है भावुकता
मन की दीवारों पर
लिखी जा रही है
अभिव्यक्ति की
अबूझ रचनायें
मौन
की परिभाषा के बीच
ये कौन से लेखनी है
जिसकी अमिट स्याही
जोड़े हुए है हमें
एक - दूसरे से ......


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मधुर बोल [ गूगल से ]


Lyrics of Banjaara in Hindi:

Banjaara Lyrics in Hindi Ek Villain

Wednesday, 6 August 2014

हाय ! गर्मी

' आक् - आक्...दो उल्टियां ..ओह ! ', नई दुल्हन भागकर वाश -बेसिन तक जाती है |
ससुर जी हर्षित हैं और देवर चुपके -चुपके मुस्कुरा रहे हैं ...मार्च का अंतिम सप्ताह है , सोचते हैं बहू/ भाभी के लगता है ... पैर भारी हैं ...आमतौर पर ऐसे ही तो होता है नयी -नवेली दुल्हन का हाजमा खराब हुआ नहीं कि घर -भर में हर्ष की लहर दौड़ जाती है |
' 'मनिका को तुरंत डॉ. को दिखाओ ! '', तुरंत बेटे को ऑर्डर दिया जाता है |...............
पर वो दूर के रिश्ते की भाभी बड़ी ही सयानी निकली -
''अरे पहाड़ की लड़की है ...इतनी गर्मी की आदत कहाँ उसे !! अभी से देखो पीली पड़ गयी है ...हाय ! कहीं जोंडिस तो नहीं !! ...कोई खुशखबरी-वबरी नहीं है '' ,
'' लड़की ! देखती जा ; अभी कितनी गर्मी होती है यहाँ '' |
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'दूल्हा ' आगरे , इलाहाबाद , राजस्थान या दिल्ली का हो तो जरा सोच-समझकर करना लड़कियों ! विवाह :))
[ हिल स्टेशन की लड़कियों को खास हिदायतें ]

Wednesday, 9 July 2014

लघुकथा - मुद्दतों बाद

' सुनो ! तुम मिले भी हो तो कितने सालों बाद !! ......तुम दो बेटों के पापा हो और मैं भी दो बच्चों की माँ ' , ............कहना चाहती थी ये सब जेसिका उस लड़के [ दो बच्चों के पापा ] से...
कैसे कहूँ !! 
सोचती रही ...फिर कह ही दिया - ' मैंने तुम्हारा इन्तजार किया था ..शायद पाँच- छ: साल तक ', 
सुनकर बोला वह ' लड़का ' - ' तब बोलना चाहिए था ना ! तब तो कभी कहा नहीं तुमने कुछ ! ', 
' हम्म ! ' कैसे कहती !! मुझे भी तो पता नहीं था कि तुम्हारे मन में क्या है ...', एक दबी सी मुस्कराहट के साथ फिर कहा लड़की ने - ' वैसे हमको एक दूसरे के बारे में भी अपने ही दोस्तों से पता चला था ना कि हम एक दूसरे को पसंद करते हैं ; तुमने कौन सा कुछ कहा था !! ', ' इडियट कहीं के ', इडियट ! मन ही मन बुदबुदाई थी वह .....
लड़का मुकुराया था - ' थोड़ी पागल हो तुम ... फिर से स्कूल जाने का इरादा है क्या !! ', 
समझदार था लड़का , सब कुछ हँसी में टाल गया ...........अब क्या हो सकता था भला !!

Friday, 2 May 2014

बेटी

ममा ! उस वाल का कलर मैं चूज करुँगी ,
पापा ! मुझे यहाँ पर ऐसा बुक- शेल्फ चाहिए ,
नहीं !! मुझे वो रंग पसंद है 
मै तो अपने कमरे में एक कोलाज लगाऊँगी,
उस रैक पर मेरे सारे जूते आ जायेंगे क्या !!
और वो ! उस वाल को टाइल्स से हाईलाईट करवाऊँगी
इधर ; हाँ ठीक यहाँ पर एक क्रिस्टल गणेश रखूँगी ,
नहीं !! मुझे अपने रूम को अपनी पसंद से सजाना है 
मैं ये करुँगी - मैं वो करुँगी ....
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मकान बनते समय चहकती थी जो 'लड़की ' ,
अपने कमरे को निहार;
आज कुछ गुमसुम है
सुना तुमने !
कुछ दिनों बाद उसका विवाह होने वाला है

पिछली सर्दियों में

याद है तुम्हें ! 
वो पिछली सर्दी की .....
मेरे हाथ में था नया मोबाइल ,
तुम पढ़ रही थी पेपर 
और मैने थमाया था 
तुम्हारे हाथ में ग्रीन टी का कप,
'चलो ! एक फोटो हो जाय '
बोला था मै
अपने चश्मे के पीछे से
गहरे काजल से सजी बोलती आँखों से
मुस्कुराई थी तुम
कुछ - कुछ जैसे कहा हो तुमने-

 'हुँह !! '
'जाओ ! पहले जरा अपने बाल सही कर लो
और अभी तक नहाये भी नहीं हो ',

गले में मफलर डाल
पगलू जैसे दिख रहे हो :))
'और तुम !! तुम अपने बाल देखो
मेंहदी लगाने लगी हो आजकल,
मै तो नेचुरल रहता हूँ ,
वो अलग बात है तुम अपने लंबे बालों को
पता नहीं कैसे करती हो मेनटेन अब तक !!'
थोड़ा नाराज सा  

चेयर पर बैठ गया था मैं
'मत खिंचाओ पिक ',
यह बुदबुदाते हुए ..कुछ मुँह बनाकर
अरे !
अचानक से गलबहियाँ डाल आ खड़ी हुई  तुम ,
मेरे पीछे ,
अखबार को जल्दी से फेंक , गर्म चाय का कप छोड़कर 

क्लिक ! क्लिक !
खींच ली थी मैंने दो पिक ,
इस भरी गर्मी में लगायी है आज  एक ;
अपनी वाल पर 

फिर कहना है मुझे 
तुमसे आज कि 
तुम्हारा  ' प्रेम  '
सर्दी में ऊष्मा देता है मुझे 
और 
और भरी गर्मी में असीम ठंडक 


Monday, 7 April 2014

प्रेम

माँ, 
बहन ,
बेटी ,
सखी 
और 
 पत्नी के रूप में 
सहज ही मिल जाता रहा है तुम्हें 
'प्रेम ' 
इसलिए तुम्हारा जिद्दी होना तय था 
हे ! महापुरुष  
और क्या कहू !! 

Friday, 4 April 2014

नमक और जिंदगी

नमक के खेतों में पाए गए
कई पैरों से रिसते घाव
गलने तक मुरझाई त्वचा
 तुम
अब भी कहते हो तुम्हारी
जिन्दगी  की थाली में
 नमक बहुत कम है

Monday, 10 March 2014

बसंत से पहले

नि:शब्द
लहराता
कंपकंपाता
थरथराता
फिर गिरा
एक पत्ता
डाली से ....