Monday, 24 November 2014

'नवरात्र '

चटाक ! ' रुको माही .. गेहूँ छू ली तुम !! '
दादी ने भवें चढा बुरा सा मुँह बना , कर्कश आवाज में माही को फटकारते हुए एक करारा चाँटा रसीद किया |
परात पर सूखते ये गेहूँ ' नौ कुँवारी नन्हीं कन्याओं के भोजन ' के लिए थे|

No comments:

Post a Comment