कोई कशीदे
नहीं काढे ना रची
कोई रचना
बस खीझते रहे
ख़याल यूँ ही मेरे
*
तुम्हारा आना
सरदी की मोहिली
धूप सा लगा
बस बोल अबोले
गुमसुम से रहे
*
उबते रहे
इन्तजार के पल
रुखसत भी
होते गए यूँ बिन
ठहरे बिन कहे
बढ़िया तांका|
ReplyDeleteनई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
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धन्यवाद ! ब्रजेश जी ..
ReplyDeleteधन्यवाद ! कालीप्रसाद जी ....
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