Sunday 18 November 2012

तीन ' तांका ' [ जापानी विधा ]

कोई कशीदे
नहीं काढे ना रची 
कोई रचना 
बस खीझते रहे 
ख़याल यूँ ही मेरे 


      * 
तुम्हारा आना 
सरदी  की मोहिली 
धूप सा लगा 
बस बोल अबोले 
गुमसुम से रहे 

       *
उबते रहे 
इन्तजार के पल 
रुखसत भी 
होते  गए  यूँ बिन 
ठहरे बिन कहे

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