कोई कशीदे
नहीं काढे ना रची
कोई रचना
बस खीझते रहे
ख़याल यूँ ही मेरे
*
तुम्हारा आना
सरदी की मोहिली
धूप सा लगा
बस बोल अबोले
गुमसुम से रहे
*
उबते रहे
इन्तजार के पल
रुखसत भी
होते गए यूँ बिन
ठहरे बिन कहे