Wednesday, 20 June 2012

शब्द तुम्हारे

मिथ्या मित्र 
मिथ्या शब्द 
मिथ्या ये दुनियां 
फिर क्यों चले आते हो 
जब - तब इस दुनियां में 
झूठ कहा था तुमने 
सच तो ये है 
कहीं  ना कहीं 
सच हैं 
झूठ में जीती ये दुनियां ....

कुछ विचारों का आना .....

   १  - ख़याल ओढ़े नहीं जाते बस ' घर ' कर जाते हैं |

   २- हमने छोड़ दिया हैं मित्रों पर हक ज़माना ,......क्या जाने कब  ' मूड खराब ' हो उनका  |

   ३-तुम्हारा आना , भीगोकर मिट्टी , इत्र महकाना और यूं चले जाना ....तुम कितनी जल्दी में थे बादल !!

   ४- तुम्हारा यूँ चुपचाप आना  और  चुपचाप चले जाना ....ढूँढनी पढ़ती हैं पदचापों की निशानियां.....|

   ५- यूकिलिप्टस की भीगी  छाल की खुशबू ,हरी कोंपलें , देती हैं तुम्हारे बरसने के सुराग  |