Monday, 25 April 2016

गुजरात ....

आयशा ! तुमको याद है ना !
बी.ए. में तुम और मैं इकठ्ठा पढ़ती थीं
हम दोनों एक साथ बन-समोसा खाते थे
और बाद में एक -एक आइसक्रीम भी
फिर सालों के अंतराल के बाद
जब
तुम अचानक से मिली एक दिन अपने शौहर के साथ
एक - दूसरे का हाल पूछने के बाद
जाने क्यों तुम तल्ख़ सी लगी मुझे
अचानक छेड़ दिया था तुम्हारे गुजराती शौहर ने
गुजरात दंगों का जिक्र
और मेरा सहिष्णु हिन्दू रक्त भी उबलने लगा था
उनकी बातें सुनकर
मैं गोधरा कांड को सामने देख रही थी
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सालों बाद सोच पायी हूँ
ये कांड - वो कांड की की यादों को जिन्दा रख
क्या हमने जानबूझकर
मजहब और धर्म के अंतर को जिन्दा रखने की कोशिश नहीं की !!
बुद्धिजीवी कहे जाने वाले एक तबके ने
और
सत्ता के मद में चूर आकाओं ने इस अंतर को
अपने फायदे के लिए इसको कितना भुनाया !!
तुम अगर अपनी सोच 'मदनी ' जैसी रखोगी तो
जान पाओगी
सच !!
मैं अब भी तुम्हारी वही पुरानी दोस्त हूँ
जिसे तुम यूरोपियन हिस्ट्री की कक्षा में
कोहनी मार-मार कर सचेत किया करती थी कि
देख ! किसी दिन नेगी मैम तुझे उनका स्केच बनाती देख लेंगी
तो तेरी खैर नहीं !!
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सुन !
सुना तो होगा तूने ; गुजरात अब मुल्क के हर कोने में पहुँचने वाला है
पर मुझे विश्वास है
तुम्हारे शौहर के जेहन में अंकित गुजरात से बिलकुल
जुदा होगा ...
आयशा ! तुम जहाँ कहीं भी हो सुन रही हो ना !

नोट - ' गुजरात अब हर मुल्क के कोने तक पहुँच रहा है ', इस पंक्ति ने मुझे कुछ -कुछ सच बातों वाली कविता को लिखने मजबूर किया |
अपने एक मित्र की 'पंक्ति ' से प्रेरित :))
32Govind Prasad Bahuguna, Gunjan Agrawal and 30 ot