शिखर तुम
वीरान लगते हो
बरफ बिन
*
गजरे में हो
महक बने तुम
अर्थी में आंसू
*
तुम आलोचक बन
'जिंदगी' नाम के
मेरे इस चलचित्र की
देना आलोचना
मध्यांतर से पहले और
मध्यांतर के
बाद की कहानी में
मेरा अभिनय ,
मेरी संवाद अदायगी
कितनी खरी उतरी हूँ में
तुम्हारे तीनों नेत्रों
निर्देशन में ' भगवन्'.......